जाने हिन्दू धर्म अर्थात सनातन धर्म के कुछ महत्वपूर्ण बाते।

हिन्दू धर्म अर्थात सनातन धर्म 

हिन्दू धर्म को प्राप्त शोध के अनुसार विश्व का सबसे प्राचीन धर्म माना जाता है। हिन्दू शब्द की उत्पति भारत की प्रमुख सभ्यता सिन्‍धु घटी सभ्यता, सिंधु नदी तथा हिमालय के नाम से मिलकर मानी जाती है। हालांकि इस धर्म का मूल नाम सनातन धर्म माना जाता है।

हिन्दू अर्थात सनातन धर्म में ईश्वर को एक अनंत शक्ति माना गया है जो संपूर्ण ब्रह्मंड में व्याप्त है। ईश्वर एक ही है जिसे ब्रह्म कहा गया है। वेदों का एकेश्वरवाद ही वसुधैव कुटुम्बकम के सिद्धांत के मुख्य  आधार है, जिसका अर्थ है कि पूरी पृथ्वी एक परिवार है।

वैसे मानयताओ के अनुसार  देवी, देवता और भगवान असंख्य हैं, लेकिन ब्रह्म ही सत्य है और उससे बढ़कर कोई नहीं। ब्रह्म के बाद ही त्रिदेवों की सत्ता है और उसके बाद अन्य देव और असुरों की। देव-असुरों के बाद पितरों की और पितरों के बाद मानव की सत्ता मानी गई है।

सनातन धर्म अर्थात हिन्दू धर्म के यूं तो कई सिद्धांत है परंतु प्रमुख सिद्धांत है

1. षष्ठ कर्म का सिद्धांत अर्थात नित्य, नैमित्य, काम्य, निष्काम्य, संचित और निषिद्ध।

2.पंच ऋण का सिद्धांत (देव, ऋषि, पितृ, अतिथि और जीव ऋण),

3.पुरुषार्थ का सिद्धांत (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष),

4.आध्यात्मवाद का सिद्धांत,

5.आत्मा की अमरता का सिद्धांत,

6.ब्रह्मवाद का सिद्धांत,

7.आश्रम का सिद्धांत (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास),

8. मोक्ष मार्ग का सिद्धांत,

9. व्रत और संध्यावंदन का सिद्धांत

10. अवतारवाद का सिद्धांता

शोधों के अनुसार सिन्‍धु और सरस्वती नदी के बीच जो सभ्यता बसी थी, वह दुनिया की सबसे प्राचीन और समृद्ध सभ्यता थी। यह वर्तमान के अफगानिस्तान से हिन्दुस्तान तक फैली थी। प्राचीनकाल में जितनी विशाल नदी सिन्धु थी उससे कई ज्यादा विशाल नदी सरस्वती थी। इसी सभ्यता के लोगों ने दुनियाभर में धर्म, समाज, नगर, व्यापार, विज्ञान आदि की स्थापना की थी।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस हिन्दू अर्थात सनातन धर्म की उत्पत्ति मानव की उत्पत्ति के पूर्व हुई थी, परंतु विद्वानों के अनुसार इस धर्म का प्रारंभ स्वयंभुव मनु के काल में हुआ था। हालांकि ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार इस धर्म की उत्पत्ति का इतिहास सिंधु घाटी सभ्यता से पूर्व का माना जाता है। अनुमानीत 5 हजार ईसा पूर्व इस  धर्म की उत्पत्ति हुई थी।

इस धर्म की स्थापना किसी एक व्यक्ति विशेष ने नहीं की है। कहते हैं कि जिन्होंने ऋग्वेद की रचना की उन ऋषियों और उनकी परंपरा के ऋषियों ने इस धर्म की स्थापना की है। जिनमें ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अग्नि, आदित्य, वायु और

अंगिरा का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। इनके साथ ही प्रारंभिक सप्तऋषियों का नाम लिया जाता है। ब्रह्म (ईश्वर) से सुनकर हजारों वर्ष पहले जिन्होंने वेद सुनाए, वही संस्थापक माने जाते हैं। हिन्दू धर्म वेद की वाचिक परंपरा का परिणाम है।

वेद इसका सबूत है कि  हिन्दू धर्म दुनिया का सबसे प्राचीन धर्म है। शोधों के अनुसार वेद दुनिया की प्रथम पुस्तक है। वेद मानव सभ्यता के लगभग सबसे पुराने लिखित दस्तावेज हैं। सर्वप्रथम ईश्वर ने 4 ऋषियों  को इसका ज्ञान दिया- अग्नि , वायु, अंगिरा और आदित्य।

वेदों के आधार पर ही दुनिया के अन्य धर्मग्रंथों की रचना हुई। जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी पिछले 6-7 हजार ईस्वी पूर्व से चली आ रही। माना जाता है कि वैदिक साहित्य का स्चनाकाल 2000-2500 ईसा पूर्व हुआ था। दरअसल, वेदों की रचना किसी एक काल में नहीं हुई। विद्वानों ने वेदों के रचनाकाल की शुरुआत 4500 ई.पू. से मानी है अर्थात ये धीरे-धीरे रचे गए और अंतत: माना यह जाता है कि पहले बेद को 3 भागों में संकलित किया गया- ऋग्वेद, यजुर्वेद व सामवेद जिसे ‘वेदत्रयी’ कहा जाता था। मान्यता अनुसार वेद का विभाजन राम के जन्म के पूर्व पुरुरवा ऋषि के समय में हुआ था। बाद में अथर्ववेद का संकलन ऋषि अथर्वा द्वारा किया गया।

दूसरी ओर कुछ लोगों का यह मानना है कि कृष्ण के समय द्वापर युग की समाप्ति के बाद महर्षि वेदव्यास ने बेद को 4 प्रभागों में संपादित करके व्यवस्थित किया। इन चारों प्रभागों की शिक्षा 4 शिष्यों पैल, वैशम्पायन, जैमिनी और सुमन्तु को दी। उस क्रम में ऋग्वेद- पैल को, यजुर्वेद- वैशम्पायन को, सामवेद- जैमिनी को तथा अथर्ववेद- सुमन्तु को सौंपा गया। इस मान से लिखित रूप में आज से 6,510 वर्ष पूर्व पुराने हैं वेदा।

श्रीराम का जन्म 5114 ईसा पूर्व हुआ था और श्रीकृष्ण का जन्म 3112 ईसा पूर्व हुआ था। आर्यभट्ट के अनुसार महाभारत युद्ध 3137 ई.पू. में हुआ था। इसका मतलब यह कि वैवस्वत मनु (6673 ईसापूर्व) काल में वेद लिखे गए।

हिन्दू धर्म के अनुसार ईश्वर अकेला होते हुए भी सर्वव्यापक है। सभी को ईश्वरमय और ईश्वरीय समझना ही सत्य, धर्म, न्याय और मानवता की सोच को बढ़ावा देता है। हिन्दू मानते हैं कि कंकर-कंकर में शंकर का वास है इसीलिए जीव हत्या को “ब्रह्महत्या’ माना गया है। जो व्यक्ति किसी भी जीव की किसी भी प्रकार से हत्या करता है उसके साथ भी वैसा ही किसी न किसी जन्म विशेष में होता है। यह एक चक्र है।

इसीलिए वेदों में दिया है- प्रज्ञानाम ब्रह्म, अहम्‌ब्रह्मास्मि, तत्वमसि, अयम आत्म ब्रह्म, सर्व खल्विदं ब्रह्म तज्जलानिति अर्थात- ब्रह्म परम चेतना है, मै ही ब्रह्म हूं, तुम ब्रह्म हो, यह आत्मा ब्रह्म है और यह संपूर्ण दृश्यमान जगत्‌ बरह्मरूप है, क्योंकि यह जगत्‌ ब्रह्म से ही उत्पन्न होता है।

यही भावना ही अहिंसा का आधार है। अहिंसा ही परमोधर्म है। इसी अहिंसा की भावना को विकसित करने के लिए ही कहा गया है:-

आत्मवत्‌ सर्वभूतेषु’ सभी प्राणियों को अपनी आत्मा के समान मानो।

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