हार्वर्ड लॉ स्कूल से सम्मानित ये महिला पुणे की जेल में क्यों बंद है?

हार्वर्ड लॉ स्कूल में वीमन्स डे के दिन एक एक्जिबिशन हुआ. फोटो प्रदर्शनी लगाई गई. इस प्रदर्शनी में दुनियाभर की 21 ताकतवर महिलाओं की तस्वीरें लगी थीं. उन महिलाओं की तस्वीरें, जिन्होंने कानून के क्षेत्र में बढ़िया काम किया था. इन 21 महिलाओं में एक नाम था सुधा भारद्वाज का. सुधा को महिला दिवस के दिन हार्वर्ड लॉ स्कूल ने पोर्ट्रेट एक्ज़िबिट यानी फोटो प्रदर्शनी में जगह देकर सम्मानित किया. हैरानी वाली बात तो ये है कि जिस सुधा को हार्वर्ड ने सम्मानित किया है, वो इस वक्त पुणे की जेल में बंद हैं.

क्यों? लंबी कहानी है. बताते हैं. माओवादियों से कथित संबंध रखने के आरोप में, पिछले साल सुधा की गिरफ्तारी हुई थी. पिछले साल यानी 2018 की पहली जनवरी के दिन पुणे के भीमा कोरेगांव में हिंसा हुई थी. इस हिंसा के ठीक एक दिन पहले पुणे के शनिवरवदा फोर्ट में एल्गार परिषद सम्मेलन हुआ था. ये परिषद भीमा कोरेगांव लड़ाई के 200 साल पूरे होने के मौके पर हुआ था.

एल्गार परिषद के दूसरे ही दिन भीमा कोरेगांव में जातिगत हिंसा हो गई. पुणे पुलिस इस मामले की जांच में जुट गई. सुधा के ऊपर आरोप लगा कि एल्गार परिषद सम्मेलन से उनका कनेक्शन है. और भीमा कोरेगांव हिंसा को भड़काने में भी उनका हाथ है. साथ ही ये आरोप भी लगा कि सुधा का माओवादियों से कनेक्शन है. इस केस के सिलसिले में पुणे पुलिस ने अगस्त में सुधा समेत पांच कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया. कवि वरवरा राव, सुधा भारद्वाज, सामाजिक कार्यकर्ता अरुण फरेरा, गौतम नवलखा और वर्णन गोंजाल्विस की गिरफ्तारी हुई.

सुधा को पहले हाउस अरेस्ट में रखा गया. उसके बाद अक्टूबर 2018 में उनकी गिरफ्तारी हुई. उसके बाद से ही अभी तक वो पुणे की जेल में है. उनकी बेल याचिका पहले खारिज कर दी गई थी.

खैर, मामला क्या था, ये तो जान गए हैं आप. अब जानते हैं कि सुधा भारद्वाज आखिर हैं कौन?

सुधा वकील हैं. एक्टिविस्ट हैं. प्रोफेसर भी हैं. नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी दिल्ली में विजिटिंग प्रोफेसर के तौर पर पढ़ाती हैं. इंडियन एसोसिएशन फॉर पीपुल्स लॉयर्स (IAPL) की वाइस-प्रेसिडेंट हैं.

सुधा जन्म से अमेरिकी नागरिक थीं. पैरेंट्स पीएचडी करने के लिए यूएस में रह रहे थे. सुधा वहीं पैदा हुईं. 11 साल की थीं, तब भारत लौटीं. 18 की हुईं, तो अमेरिकी नागरिक वापस कर दी. भारतीय नागरिकता ले ली. फिर उसी साल यानी 1984 में उन्होंने आईआईटी कानुपर में दाखिला लिया. गणित पढ़ने के लिए. पांच साल तक पढ़ाई की. आईआईटी कानपुर की टॉपर भी रहीं.

आईआईटी में थीं, तब ही सामाजिक कार्य करने में दिलचस्पी बढ़ी. यूनियन लीडर शंकर गुहा नियोगी के प्रभाव में वामपंथ से जुड़ीं. वकील बनने का ठान लिया. साल 2000 में लॉ की डिग्री हासिल कर ली. छत्तीसगढ़ मुक्ती मोर्चा से भी जुड़ीं. 2007 से छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में वकालत करना शुरू किया.

सुधा ने 30 साल तक छत्तीसगढ़ में मजदूरों के लिए काम किया. वो इतने साल तक छत्तीसगढ़ में मजदूरों के बीच रहीं. वो ट्रेड यूनियन नेता भी हैं. मजदूरों के लिए काम किया, गरीबों के लिए काम किया. छत्तीसगढ़ की पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) की महासचिव भी हैं.

2018 की जुलाई में सधा के ऊपर आरोप लगा कि उन्होंने एक माओ नेता प्रकाश को लेटर लिखा था. और कहा था कि देश में कश्मीर जैसे हालात बनाने हैं. इस आरोप पर सुधा ने पब्लिक लेटर भी लिखा. कहा कि ये सभी आरोप झूठे हैं. सभी आरोपों को सिरे से खारिज किया. एक और आरोप लगा कि उन्होंने माओवादियों से पैसे लिए थे. इस आरोप को भी सुधा ने खारिज किया. कहा कि नक्सलवादियों से उनका कोई कनेक्शन नहीं है.

Source – Odd nari

   
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