स्वस्तिकासन /Swastikasana
परिचय –
यह आसन अत्यंत कल्याणकारी है। इसका अभ्यास सरल और लाभदायी है। लंबे समय तक ध्यानावस्था में बैठने के लिए ये एक अच्छा आसन है। जो साधक सिद्धासन या पद्मासन का अभ्यास करने में कठिनाई महसूस करते है ,वो इस आसन में बैठ कर प्राणायाम, ध्यान साधना या अन्य यौगिक क्रियाये कर सकते है। इसका अभ्यास चित्त को एकाग्र कर ,व्यक्ति का आध्यात्मिक विकास करता है।
विधि
- किसी शांत जगह पर निचे चटाई, स्वच्छ कम्बल या कपडे पर सामान्य अवस्था में पैर फैलाकर बैठें।
- पैरों को सामने फैलाये एवं कमर को सीधा रखे।
- अपने बाएं पैर को घुटने से मोड़कर,तलवे को दाहिने जंघा और पिंडली (Calf, घुटने के नीचे का हिस्सा) और के बीच इस प्रकार स्थापित करेंकी बाएं पैर का तलवा छिप जाये ।
- उसके बाद दाहिने पैर के पंजे और तल को बाएं पैर के नीचे से जांघ और पिंडली के मध्य स्थापित करे।ऐसा करने से स्वस्तिकासन बन जाता है।
- कमर ,छाती एवं गर्दन को सीधा रखे।
- दोनों हाथों को घुटनों पर रखे ,और कंधों को ढीला छोड़ दे।
- ध्यान मुद्रा मेंबैठें तथा रीढ़ (spine) सीधी कर श्वास खींचकर यथाशक्ति रोकें और छोड़ दे।
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अपना ध्यान नाक के अग्रभाग या भृकुटि के बिच लगाने का प्रयास करे।
- जीतनी देर इस आसन में रुकना संभव हो ,उतनी देर इस अवस्था में बने रहे।
- कुछ देर बाद पुनः सामान्य अवस्था में आ जाए।
- इसी प्रक्रिया को पैर बदलकर भी करें।
लाभ
- इसआसान का अभ्यास मन को एकाग्र कर चित्त को स्थिर बनाता है।
- पैरों का दर्द, पसीना आना दूर होता है।
- पैरों का गर्म या ठंडापन दूर होता है।
- पैरों की मांसपेशियों को आराम देता है।
- तनाव एवं चिंता को दूर कर मष्टिक एमएएस को तनावरहित बनाये रखता है।
- श्वसन क्षमता को सुधारता है।
- स्मरणशक्ति को बढ़ाता है।
- मेटाबोलिज्म और हार्मोन्स को संतुलित बनाये रखने में सहायता करता है।
- मेरुदंड को लचीला एवं मजबूत बनाता है।
- ध्यान हेतु बढ़िया आसन है।
सावधानी
केवल जिन्हे मेरुदंड की गंभीर समस्या है ,उन्हें इस आसन का परहेज करना चाहिए।
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