एमएस धोनी. एक अध्याय. जिसका आज अंत हो गया है. क्रिकेट और एमएस धोनी के फैंस भावुक हैं. ये बात हर किसी को पता है कि एमएस धोनी शॉर्टर फॉर्मेट के कमाल के बल्लेबाज़, विकेटकीपर और कप्तान थे. लेकिन उनकी कप्तानी के किस्से उनके खेल से ज़्यादा मशहूर हुए. ऐसा ही एक किस्सा है 2008 कॉमनवैल्ड बैंक सीरीज का. जब धोनी ने पूरी टीम को एक ऑर्डर दिया कि इस जीत का जश्न खुलकर नहीं मनाना.
2007 टी20 विश्वकप की जीत हो, या 2011 विश्वकप की. अपने घर में धोनी ने जो भी तस्वीरों के फ्रेम लगाए होंगे. उनमें से कितनी ही तस्वीरों में वो पीछे खड़े दिखेंगे. अकसर मैदान पर जीत हो या हार वो अपनी भावनाएं व्यक्त नहीं करते.
भरत सुंदरेसन की किताब में 2008 में भारत की ऑस्ट्रेलिया पर जीत के बाद का एक किस्सा है. जिसमें टीम इंडिया ने जब 2008 में मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड पर ऑस्ट्रेलिया को हराया तो धोनी ने अपने टीम के साथियों से कहा कि इस जीत का जश्न ज़ाहिर करते हुए बहुत ज़्यादा नहीं मनाना.
उन्होंने अपनी टीम से कहा कि अगर वो बहुत ज़्यादा जोश के साथ इस जीत को मनाएंगे तो ऑस्ट्रेलियंस को लगेगा कि टीम इंडिया की जीत एक तुक्का है. धोनी का ये प्वॉइंट एकदम साफ था कि अब ऐसा बार-बार होता रहेगा. धोनी का ये संदेश उनकी कप्तानी के शुरुआती दिनों में ही आ गया था.
उस वक्त ऑस्ट्रेलिया एक वर्ल्ड चैम्पियन टीम थी, जिसके पास रिकी पोंटिंग जैसा एक वर्ल्ड चैम्पियन कप्तान था. वहीं दूसरी तरफ भारत के पास एक नया नवेला लेकिन एक समझदार कप्तान था.
शुरू करते हैं उस मैच की कहानी से:
उस मुकाबले में इशांत शर्मा और इरफान-श्रीसंत की कमाल की गेंदबाज़ी से ऑस्ट्रेलिया की टीम 43.1 ओवर में ही 159 रन पर सिमट गई थी. ये एक ऐतिहासिक क्षण होने वाला था. क्योंकि ऑस्ट्रेलिया जैसी बड़ी टीम को इस तरह उसी के घर में ढेर करना बड़ी बात थी.
इसके बाद टीम इंडिया बैटिंग के लिए उतरी तो सहवाग जल्दी आउट हो गए. उनके जाने के बाद इरफान पठान सचिन के साथ खेलने आए. लकिन वो 18 गेंदों में 30 रन बनाकर आउट हो गए. इसके बाद सचिन और गंभीर की 35 रन की पार्टनिरशिप से टीम स्कोर के करीब पहुंच रही थी. लेकिन गंभीर भी फिर 21 रन बनाकर आउट हो गए. देखते ही देखते सचिन और फिर युवराज भी 100 रन पूरे होते ही वापस पवेलियन लौट गए. इंडिया ने 102/5 विकेट गंवा दिए थे.
इसके बाद धोनी ने यंग रोहित शर्मा के साथ मिलकर टीम को जीत की तरफ बढ़ाया. लेकिन जब जीत के लिए सिर्फ 10 रन बचे तो धोनी ने अपने गलव्स बदलने के लिए ड्रेसिंग रूम की तरफ इशारा किया. लेकिन गल्व बदलने से ज़्यादा वो इशारा एक मैसेज देने के लिए था. उन्होंने मैदान पर गल्व लेकर आए खिलाड़ी से कहा कि
”वो टीम को ये संदेश दे कि जब हम मैच जीतें तो कोई भी बालकनी में आकर जश्न ना मनाए.”
धोनी ने रोहित को भी ये समझा दिया था कि वो ऑस्ट्रेलियन टीम से बिल्कुल साधारण तरीके से हाथ मिलाए जिससे की ये संदेश बिल्कुल भी ना जाए कि हमारे लिए ये जीत बहुत ज्यादा खास है. धोनी ने आखिरकार मैच जिताया और 17 रन बनाकर नॉट-आउट लौटे.
दरअसल धोनी अपने विरोधियों को ये बताना चाहते थे कि
‘ये नया इंडिया है, घर में घुसेगा भी और मारेगा भी.’
साथ ही ये जीत हमारे लिए कोई बहुत बड़ी जीत नहीं है.
सुंदरेसन की किताब में एक खिलाड़ी ने बताया था कि धोनी ने इस जीत के बाद कहा था कि
”मेरे गेंदबाजों ने उन्हें 160 रन पर ऑल-आउट कर दिया और हमने उस लक्ष्य को चेज़ कर लिया. उसमें कौन सी बड़ी बात है. अगर हम बहुत ज़़्यादा जश्न मनाएंगे तो ऑस्ट्रेलयंस को ये हार निराश करने वाली लगेगी. हम उन्हें ये बताना चाहते थे कि ये सब गलती से नहीं हुआ है. अब ऐसा बार-बार होता रहेगा.”
धोनी की कप्तानी की यही खासियत थी कि वो जीत हो या हार उसमें से टीम के लिए पॉज़ीटिव चीज़ ढूंढ ही लाते थे. इसी वजह से उन्होंने इस जीत के बाद भी ऑस्ट्रेलिया को एक नहीं कई बार हराया.
Source – The Lallan Top