पीरियड के बारे में वो बातें जो लड़कियां छिपा लेती हैं, लड़कों को कभी पता नहीं चलता

महीने के ‘वो’ दिन. यानी पीरियड, आने वाले होते हैं, तभी आपको पता चल जाता है. दुनियाभर में महिलाएं उन दिक्कतों से गुजरती हैं जब उनके रूटीन और काम पर असर पड़ने लगता है. बावजूद इसके वो ऑफिस आती हैं. काम करती हैं. लेकिन अपने पुरुष बॉस से पीरियड में हो रही दिक्कतों पर बात भी नहीं कर सकतीं. महिलाएं पीरियड से जुड़ी दिक्कतों पर झूठ बोलती हैं. बहाना करके टालती हैं. तकलीफें छुपाती हैं. अंदर ही अंदर औरत होने पर घुटती रहती हैं.

मैं ये नहीं कह रही कि दुनिया की हर औरत के साथ ये हो रहा है. लेकिन कई औरतों इस स्थिति से गुजर रही हैं. खैर इससे पहले आप ये सोचें कि पीरियड कोई बड़ी चीज नहीं है. इससे आसानी से निपटा जा सकता है. रुक जाइए. जिन महिलाओं को PCOD, फाइब्रॉएड्स, एंडोमेट्रियोसिस या हेमोरेजिक ऑवेरियन सिस्ट या या PMDD होते हैं. उनके लिए पीरियड आप सोच नहीं सकते, उससे ज्यादा भयंकर होते हैं.

राजनीति में उतरी जेएनयू की स्टूडेंट शेहला राशिद ने हाल ही में ट्विटर अकाउंट से पोस्ट किया. लिखा कि वो कैसे अपनी जिंदगी खत्म करना चाहती हैं. मैं तुरंत उनसे मिलने निकली. क्योंकि मैं हैरान थी कि इतनी बहादुर, बुद्धिमान और समझदार लड़की अपनी जिंदगी खत्म क्यों करना चाहती है. पता चला कि उन्हें PMDD है. पूर्व मासिक धर्म संबंधी दिक्कत. ये PMS का गंभीर रूप है. वो उस वक्त को याद करते हुए कहती हैं कि वो कैसे अपनी जिंदगी खत्म करना चाहती थीं. पीरियड आने के बाद उन्हें वैसा महसूस होना बंद हो गया.

मैंने याद करते हुए उन्हें बताया कि, जब मैं एक मॉर्निंग न्यूज एंकर थी, सुबह 4 बजे उठती थी. भयंकर माइग्रेन और क्रेंप्स होते थे. एक हैवी पेनकिलर खाकर काम शुरू कर देती थी. क्योंकि कैमरे पर मुझे एक मुस्कुराते हुए दिखना होता था. चाहे अंदर से मैं मर रही हूं. मैंने मेरे पीरियड से जुड़ी परेशानियां कभी अपने पुरुष बॉस से शेयर नहीं कीं. भारत में ये संस्कृति कभी नहीं रही कि एक महिला अपने किसी पुरुष से अपने पीरियड के बारे में बात कर सके. मुझे भी इस बारे में बात करना बेहद अजीब लगता था. लेकिन इसके बारे में बात होनी चाहिए. ये जरूरी है. हमें अपना ये व्यवहार बदलने की जरूरत है. ये आदर्श परिस्थिति नहीं है जब महिलाएं पीरियड की तकलीफों को चुपचाप बर्दास्त कर लेती हैं. पीरियड पर ऐसे ही बात होनी चाहिए जैसे बाकी चीजों पर होती है. ताकि किसी औरत को ये न लगे कि इस बारे में बात न करना और दर्द सहना एकदम नॉर्मल है.

मेरी एक दोस्त कम्यूनिकेशन प्रोफेशनल हैं. वो कहती हैं कि पीरियड में घर से काम करने की सुविधा होने ही चाहिए. क्योंकि उन दिनों में वो मूडी, चिड़चिड़ी, गुस्सैल मिजाज हो जाती है. बार-बार रोती हैं. कुछ देर बात वो मुझे फोन करके कहती हैं कि आर्टीकल में उनका नाम न दिया जाए. यही वो दिक्कत है, जिसकी हम बात कर रहे हैं. ऑफिस में लोग उन्हें इस बात से जज कर लेंगे. इसीलिए वो पीरियड की परेशानियों को झेलना ज्यादा आसान समझती हैं. कई महिलाएं चाहे लो दवा ले या नहीं, जिंदगी के अलग-अलग दौर में इसका दर्द झेलती हैं. शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक दर्द.

मेरी मेड अपने पीरियड को लेकर काफी सहज है. वो हर महीने मुझे साफ-साफ कह देती है कि उसे पीरियड हैं. और वो काम नहीं कर सकेगी. उम्मीद है कि वो जिन भी घरों में काम करती है. वहां भी यही बोलती होगी. उस मेड की वर्किंग लाइफ, काम के दिन तय हैं. उसे पीरियड के बारे में इस तरह बात करते देखना सुखद महसूस कराता है.

एक दिन मैंने अपने एक पुरुष दोस्त को बताया कि पीरियड की वजह से मैं पार्टी में नहीं चल सकूंगी. उसने बोला कि मैंने उसे कुछ ज्यादा ही डिटेल बता दिए. नहीं, ऐसा नहीं है. ये उतना ही नॉर्मल है, जैसे मैं कहूं कि मुझे सिर दर्द है. या बुखार है. मैंने महसूस किया है कि मैं अपने पीरियड्स से एक दिन पहले बहुत इमोशनल महसूस करती हूं. लेकिन मेरे अलावा कई और औरतें ऐसा ही महसूस करती हैं.

पुरुष अक्सर महिलाओं के PMS को लेकर मजाक करते हैं. ये मजाक नहीं है. महिलाओं वाकई इस स्थिति से गुजरती हैं. और उनके लिए ये कोई मजेदार स्थिति नहीं होती. ठहाके लगाने वाली सिचुएशन नहीं होती. अचानक हुए PMS की कीमत कई बार हमारे करियर तक को चुकानी पड़ती है.

हां, योगा, ध्यान और एक्सरसाइज जैसी चीजें इसे बेहतर बना सकती हैं. लेकिन बात ये है कि पीरियड हमारे पेशेवर कामों के बीच मैनेज नहीं किए जा सकते. क्योंकि पीरियड का कोई दिमाग नहीं होता न, जो काम के बीच खुद को रोक सके. हार्मोंस को मैनेज कर सके.

कई बार महिलाएं ही महिलाओं की दुश्मन बन जाती हैं. पीरियड के बारे में बताने पर फीमेल बॉस ही आपको छुट्टी नहीं देती हैं. जबकि उनके लिए ऐसा करना बड़ी चीज नहीं है. मुझे याद है कि कई महिलाओं ने मुझसे कहा कि वो पीरियड को एक बड़ी चीज मानती हैं. और पीरियड में भी काम कराती हैं. क्या मेरी परेशानी से बाकी लोगों पर कोई असर पड़ेगा? क्या मुझे पीरियड में छुट्टी के लिए खुद को बीमार दिखाना होगा? क्या मैं सिर्फ पीरियड में छुट्टी नहीं ले सकती?

पीरियड सिर्फ यही नहीं है कि हमारे साथ हर महीने शारीरिक रूप से कुछ होता है. इस दौरान शरीर में हार्मोनल उतार-चढ़ाव होते हैं. दुख, निराशा, थकान, अजीब से ख्याल, गुस्सा, और बेहद भूख लगने जैसी चीजें भी होती हैं. औरतों से चुपचाप सबकुछ झेलने की उम्मीद की जाती है. क्योंकि समाज अभी तक उतना वयस्क नहीं हुआ कि पीरियड पर खुलकर बात कर सके.

मेरी परवरिश एक ऐसे परिवार में हुई है. जहां पीरियड शब्द टैबू नहीं है. उस पर सहजता से बात की जाती है. लेकिन आज भी कई घरों में महिलाएं बहादुरी के साथ चुपचाप सब सहती रहती हैं. कितनी महिलाएं अपने परिवार में पिता, भाई या ससुर से फोन कर पैड या टैम्पोन लाने के लिए कह सकती हैं. वो कह सकती है जब उन्हें पैरासिटामोल या कोई और सामान चाहिए हो. वो कुछ भी ऐसा कह सकती हैं जो टैबू से न जुड़ा हो. क्या हमने खुद से कभी पूछा है कि ये कितना अजीब है. इस तरह हम असलियत को मानने से ही इंकार कर रहे हैं. और उन मेडिकल स्टोर्स वालों की तो क्या बात करें, जो पैड्स के पैकेट को ब्राउन लिफाफे या ब्लैक पॉलिथीन में डालकर बेचते हैं. जैसे पता नहीं क्या अवैध सामान बेच रहे हों.

एंडोमेट्रियोसिस, PMS, PMDD वो कंडीशन है, जो किसी औरत के करियर को छोटा कर सकती हैं. क्योंकि वो और किसी ऐसे बॉस को रिपोर्ट करती है, जिसे पता ही नहीं है कि ये कंडीशन क्या हैं. इनसे गुज रही औरत कितना-कुछ झेल रही है. वो उन्हें ‘हमेशा बीमार रहने वाली’ समझ लिया जाता है. जो कि बिल्कुल गलत है.

इस बात को समझें कि पूरी तरह से स्वस्थ्य महिलाएं भी पीरियड में मेंटली और इमोशनली बहुत भर जाती हैं. कभी-कभी काम से गायब होना आपके लिए सही होता है. महिलाएं अपने करियर चॉइस लगातार बदलती रहती हैं, ताकि वो दर्द और काम दोनों मैनेज कर सकें. दोनों चीजें साथ-साथ चलती रहें.

का क्या जाता है अगर वो महिलाओं के प्रति थोड़ी सहानभूति रखे. एक पुरुष सहकर्मी का क्या चला जाएगा अगर वो अपनी महिला सहकर्मी से आकर पूछ ले कि उसे छोटी-मोटी किसी मदद की जरूरत तो नहीं. या महिला सहकर्मी के कहने पर कि ‘मेरे पीरियड चल रहे है और पेट में बहुत दर्द है’, वो उन बातों को समझ सके.

हम पीरियड पर बात तक नहीं कर पाते हैं. इतने पढ़े-लिखे होने के बाद भी.

न्यूज एंकर होने के नाते हमें हमेशा एनर्जी से भरा हुआ, लाउड, रिलेक्स लेकिन अलर्ट होना चाहिए. भले ही अंदर ही अंदर हम फिजिकली और मेंटली ट्रॉमा से गुजर रहे हों. मैं उस नर्स के बारे में सोचती हूं, जो बेहद अजीब समय में काम कर रही है. वो पत्रकार जिसका पूरा दिन धूप में खड़े-खड़े गुजरा है. महिला पुलिस कर्मचारी, जीवन के अलग-अलग पड़ाव पर संघर्ष कर रही महिलाएं, जैसे महिला राजनेता, वकील, सर्जन वगैरह. जिनकी पेशेवर जिंदगी बहुत कठिन होती है. चूक की कोई जगह नहीं. उन्हें अपना बेस्ट देना ही होता है.

मैं चाहती हूं कि जब किसी औरत को पीरियड में बेहद तकलीफ हो तो उसके महिला और पुरुष कलिग मदद के लिए आगे आएं. मैं चाहती हूं कि इस बारे में और बात हो. ताकि पीरियड टॉपिक ही नॉर्मल हो जाए.

मुझे यकीन है कि शिक्षित, विकसित समाज में हम पीरियड और उससे जुड़ी परेशानियों पर बात कर सकते हैं. ये महिलाओं के हर रोज के तनाव से निपटने में उनकी मदद करेगा. और उन्हें वर्कप्लेस पर भी मजबूत बनाएगा. जब तक महिला खुद मजबूती से इस मुद्दे पर बात नहीं कर सकेगी, वो अपने दर्द और परेशानी को दबाती रहेगी.

वास्तव में क्या हम महिलाओं को इन सभी परेशानियों से गुजरते देखना चाहते हैं. जबकि हम उन्हें सुनकर, उनकी कंडीशन समझ सकते हैं. उन्हें सहयोग कर सकते हैं. क्या हम दफ्तरों में पीरियड के पहले दिन की छुट्टी पॉलिसी को स्वीकार कर सकते हैं? क्या हमारे ऑफिसों में सेनेटरी नेपकिन्स और टैम्पोन आसानी से उपलब्ध हो सकते हैं? क्या दफ्तरों और शिक्षण संस्थाओं में मासिक धर्म को लेकर वर्कशॉप की जा सकती हैं?, ताकि पुरुष पीरियड से जुड़े इश्यू समझ सकें. इस पर सेंसेटिव हो सकें.

ये कुछ आसान उपाय हैं. हम कैसे ‘न्यू इंडिया’ हैं, जो प्रगति, विकास और सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है. जबकि अभी भी हम पीरियड जैसी चीजों के आसपास भी नहीं हैं. यहीं मैं हार जाती हूं.

Source – Odd Nari

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