बॉलीवुड अभिनेता आयुष्मान खुराना अब ‘आर्टिकल 15’ लेकर आए हैं. फिल्म आर्टिकल 15 समाज में मौजूद ऊंच-नीच और जातिगत भेदभाव पर बनी है. यही वजह है कि सवर्णों के कुछ संगठन इसका विरोध कर रहे हैं. वहीं फिल्म देखें या न देखें आपकी अपनी मर्जी है, लेकिन भारत के नागरिक के तौर पर आपका ये जानना जरूरी है कि आखिर आर्टिकल 15 है क्या और क्यों इसका पालन करना हम सब के लिए बेहद जरूरी है. आइए विस्तार से जानते हैं.
हमारे संविधान में आर्टिकल-14 से लेकर आर्टिकल-18 तक हमें समता यानी कि समानता का मौलिक अधिकार देते हैं. इसी के तहत हमें मिला है आर्टिकल 15 यानी ऐसा मौलिक अधिकार जिसके तहत किसी भी भारतीय नागरिक से उसके धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म-स्थान के आधार पर भेद-भाव नहीं किया जाएगा. सरकार और समाज की ये जिम्मेदारी है कि वो ऐसा कोई भेदभाव होने न दे.
इन्हीं में एक है अनुच्छेद 15, जिसे ताक पर रखते हुए हर रोज कुछ न कुछ ऐसा हो रहा है जो ये दिखाता है कि संविधान में लिखी बात की परवाह किसी को नहीं है. आर्टिकल 15 को 4 प्वाइंट में बांटा गया है.
जिसमें पहला प्वाइंट कहता है कि किसी नागरिक के साथ धर्म, जाति, लिंग, जन्मस्थान या मूलवंश के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता है. लेकिन सच्चाई ये है कि जातियों में ऊंच-नीच का भेद करते हुए दलितों की पिटाई, दलितों की बारात को रोका जाना, दलितों को मंदिर में न घुसने देना या फिर धर्म के नाम पर हिंदू और मुसलमानों के बीच मारपीट जैसी घटनाएं हर हफ्ते सुनने को मिल जाती है.
आर्टिकल 15 को आधार बनाते हुए दूसरा प्वाइंट कहता है कि किसी को दुकान, पब्लिक रेस्टोरेंट, होटल, सार्वजनिक मनोरंजन की जगह जिनमें सिनेमा थिएटर शामिल है, इनमें जाने से नहीं रोका जा सकता है. इसके अलावा सरकारी या अर्धसरकारी कुओं, तालाबों, स्नान घाटों, सड़कों और पब्लिक प्लेस के इस्तेमाल से भी नहीं रोका जा सकता. लेकिन आलम ये है कि कई बार लोगों के साथ भेदभाव करते हुए इन जगहों पर जाने से रोक दिया जाता है.
आर्टिकल 15 में महिलाओं और बच्चों की बात भी कही गई है. इसके तीसरे प्वाइंट में लिखा है कि राज्य महिलाओं और बच्चों को किसी तरह की विशेष सुविधा दे सकता है. लेकिन कई बार महिलाओं को विशेष सुविधा देने के मामले पर विवाद खड़ा हो जाता है.
आर्टिकल 15 का चौथा प्वाइंट कहता है कि राज्य सामाजिक या शिक्षा के नजरिए से पिछड़े हुए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लिए कोई विशेष प्रावधान बना सकता है.
लेकिन लोग अक्सर संविधान के आर्टिकल 15 की इन बातों को भूल जाते हैं. जाति और धर्म के नाम पर आर्टिकल 15 का सबसे ज्यादा उल्लंघन किया जाता है. बड़े शहरों में रहने वाले ज्यादातर लोगों को लगता है कि जाति और धर्म के नाम पर अब भेदभाव खत्म हो गया है, लेकिन सच ये है कि देश के कई हिस्सों में इस तरह का भेदभाव अभी भी पैर पसारे हुए है. जाति और धर्म को लेकर समाज में सालों से चली आ रही धारणा अभी भी मौजूद हैं.
Source – Aaj Tak