दिल्ली की राजनीति में आम आदमी पार्टी के आने के बाद से उलट पलट तो हुई है, इस बात में दो मत नहीं. शीला दीक्षित के बाद दिल्ली में कांग्रेस को चुनौती देने वाली पार्टी बनकर उभरी आम आदमी पार्टी (आप) कई समीकरण ध्वस्त कर रही है. अच्छे-बुरे, कई तरह के नज़रिए हैं पार्टी को लेकर. कई बातों को लेकर आप की आलोचना भी हुई है जो अपनी जगह सही है. वहीं कुछ चीज़ें ऐसी हैं जिनको लेकर पूरे देश में आम आदमी पार्टी को लेकर बात चल रही है.
उन्हीं में से एक है दिल्ली के सरकारी स्कूलों की परफॉरमेंस. पिछले तीन सालों में दिल्ली के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की परफॉरमेंस सुधरी है. ऐसा आंकड़े बताते हैं. यही नहीं, स्कूलों के इंफ़्रास्ट्रक्चर पर काम हुआ है, और ये सारी बातें ऐसी हैं जो खुद जाकर चेक की जा सकती हैं, देखी जा सकती हैं. आम आदमी पार्टी के मोहल्ला क्लिनिक्स और सरकारी स्कूल सुधारने के प्रोग्राम्स लोगों को पसंद आए हैं.
इसके पीछे जिनका नाम लिया जाता रहा है वो हैं आतिशी. पूरा नाम आतिशी मर्लेना.
दिल्ली की हैं. सेंट स्टीफंस कॉलेज से हिस्ट्री में ग्रेजुएशन किया. फिर ऑक्सफ़ोर्ड में जाकर पढ़ाई करके आईं. उसके बाद भारत आकर एनजीओ के साथ काम करने लगीं. हिमाचल प्रदेश में थीं. तब पहली बार प्रशांत भूषण से मिलीं. तभी से आम आदमी पार्टी के साथ काम करना शुरू किया. जब इंडिया अगेंस्ट करप्शन ने दिल्ली में जड़ें जमानी शुरू की, उस वक़्त तक आतिशी इसका हिस्सा नहीं बनी थीं. लेकिन जब दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनी, तो उसमें आतिशी का अहम् योगदान रहा. उन्होंने पार्टी के मैनिफेस्टो तैयार करने में मदद की थी दिल्ली के विधानसभा चुनावों के लिए. उसके बाद मनीष सिसोदिया के साथ काम किया, एजुकेशन एडवाइजर के तौर पर. मीडिया में भी आम आदमी पार्टी के चेहरे के तौर पर नज़र आईं.
इनका नाम तब सबसे ज्यादा लाइमलाइट में आया जब केंद्र सरकार ने आम आदमी पार्टी द्वारा अपॉइंट किये गए एडवाइजर्स को बर्खास्त करने का आदेश दिया. उनकी नज़र में ये इसलिए गलत था कि किसी भी मंत्री के साथ काम करने वालों की संख्या सीमित होती है और आप ने इस नियम का उल्लंघन किया था. केंद्र ने भी उन पोस्ट्स को अप्रूव नहीं किया था, इसलिए उन्हें इल्लीगल कह कर बर्खास्त किया गया. आतिशी का नाम इसलिए चर्चा में आया क्योंकि सैलरी के नाम पर वो एक रुपया लेती थीं, और ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़कर आने के बाद सरकार चलाने में मदद कर रही थीं. इस पर बहुत बवाल मचा, और आम आदमी पार्टी ने तय किया कि उन्हें अब चुने हुए नेताओं से ही लड़ाई लड़नी होगी.
ये बात हम नहीं कह रहे. ये बात कही आतिशी ने, ऑडनारी से बात करते हुए. इस बार ईस्ट दिल्ली की लोकसभा सीट पर आम आदमी पार्टी की कैंडिडेट हैं. अभी वहां महेश गिरी सांसद हैं जो बीजेपी से हैं. उनकी जगह डॉक्टर हर्षवर्धन को खड़ा करने की बातें चल रही हैं इस बार बीजेपी से, लेकिन अभी तक कोई आधिकारिक खबर नहीं आई है.
आतिशी से सवाल-जवाब का जो दौर चला वो हम यहां पेश कर रहे हैं:
ये जो रिफॉर्म्स हुए हैं दिल्ली के पब्लिक एजुकेशन सिस्टम में, ये सब शुरू कैसे किया आपने? आइडिया कहां से आया? प्लैनिंग कैसे की?
इसमें से बहुत कुछ तो तब तय हुआ जब हमने उन NGOs से बात की जो एजुकेशन के फील्ड में कई सालों से काम कर रहे हैं. उन्होंने ही हमें काफी इनपुट, आइडियाज़ दिए कि क्या काम कर सकता है और क्या नहीं. सभी इनपुट्स को लेकर हमने प्लैन किया कि कौन कौन से आइडिया सफलतापूर्वक इम्प्लीमेंट किए जा सकते हैं.
क्या आपने कभी सोचा था कि आप लोकसभा चुनावों में उम्मीदवार के तौर पर खड़ी होंगी?
बिल्कुल नहीं. ये मेरे काम से जुड़ा नहीं था जो मैं कर रही थी, लेकिन पार्टी ने सजेस्ट किया तो इस बारे में सोचा. मेरी सहमति के पीछे शायद एक वजह ये भी थी कि पिछले चार साल के हमारे काम में हमने देखा कि अगर आप सही व्यक्ति को सही पोजिशन के लिए चुनते हैं तो काफी बदलाव हो सकता है काफी कम समय में. इसलिए मैंने सोचा कि अब समय आ गया है इसमें भाग लेने का. एक बात और कि जब मैं एडवाइजर के तौर पर काम कर रही थी, तो केंद्र सरकार को मुझे हटाने के पीछे कोई वजह नहीं थी. केंद्र द्वारा भेजी गई चिट्ठी का लब्बोलुआब ये था कि हम आपको हटा रहे हैं क्योंकि हम ऐसा कर सकते हैं. तब पार्टी को भी लगा कि इसका सही जवाब होगा कि मैं चुनाव लडूं, और जनता द्वारा चुन कर जाऊं ना कि किसी के द्वारा अपॉइंट होकर.
आपके सरनेम को लेकर ट्रोलिंग हुई, कई तरह की बातें कही गईं. आपने उससे कैसे डील किया?
मुझे लगता है कि ये तो पॉलिटिक्स का नेचर है, हमारे देश में. ये हमारी ज़िम्मेदारी है, क्योंकि लोग हमें प्रोग्रेसिव पॉलिटिशियन समझते हैं, कि हम सही मुद्दों पर बातचीत करें. यही वजह है कि हमने लगातार काम पर फोकस किया. ये सिर्फ मेरे बारे में नहीं है. ये पूरे राजनैतिक डिस्कोर्स के बारे में है जिसकी दिशा हम तय करना चाहते हैं.
अगर आप चुनी गईं, तो आपकी प्रायोरिटी क्या होगी?
हम सबसे पहले दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा बनाने पर फोकस करेंगे. जैसे मैं स्कूलों के ऊपर पिछले कई सालों से काम कर रही हूं. अच्छे स्कूल दिलाने की हमने कोशिश की तो वो हो गया, लेकिन उन स्कूलों से निकलने के बाद बच्चों को कॉलेज में एडमिशन नहीं मिलता. हम स्कूल्स को बेहतर बनाने की कोशिश में सफल रहे क्योंकि वो हम कर सकते थे. वो हमारी ताकत में था. लेकिन उच्च शिक्षा (हायर एजुकेशन) में हम सुधार नहीं कर पा रहे हैं और बेहतर उच्च शिक्षा को लोगों तक पहुंचा नहीं पा रहे हैं. क्योंकि वो हमारे अधिकारों के दायरे से बाहर है. क्योंकि दिल्ली एक पूर्ण राज्य नहीं है. हमें केंद्र सरकार से परमिशन लेनी पड़ती है किसी भी कॉलेज को खोलने के लिए. इसे सुधारने के लिए भी दिल्ली का पूर्ण राज्य बनना ज़रूरी है. दूसरा बड़ा मुद्दा ये है कि दिल्ली दुनिया के सबसे अनसेफ़ शहरों में से एक है. इसके पीछे वजह ये है कि पुलिस दिल्ली सरकार के अधीन नहीं है. राष्ट्रीय स्तर की सरकार कितनी ही चिंता करेगी चेन स्नैचिंग और इव टीजिंग के मुद्दों पर. इसके लिए भी दिल्ली का पूर्ण राज्य बनना ज़रूरी है.
Source – Odd Nari
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