हर साल 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। इसे डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस के रूप में सेलिब्रेट किया जाता है। डॉ. राधाकृष्णन देश के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति थे। इसके अलावा वे एक दार्शनिक और शिक्षक भी थे। बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) के वर्ष 1939 से 1948 तक वाइस चांसलर रहे डॉ. राधाकृष्णन के जीवन से जुड़े कई ऐसे किस्से हैं जो बहुत कम लोग जानते हैं। जानते हैं ऐसे ही 4 किस्से…

पहला किस्सा: फूलों से सजी बग्घी से दी विदाई
डॉ. राधाकृष्णन अपनी सादगी और ज्ञान के कारण छात्रों के बीच बहुत लोकप्रिय थे। इनकी प्रसिद्धी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जब वे मैसूर यूनिवर्सिटी छोड़कर कलकत्ता विश्वविद्यालय जा रहे थे तो छात्र काफी भावुक थे। घटना 1921 की है। लेकिन छात्रों ने उन्हें शानदार विदाई देने की योजना बनाई। महाराजा कॉलेज मैसूर के छात्रों एक बग्घी की व्यवस्था की और उसे फूलों से सजाया। विदाई समारोह के बाद जब प्रोफेसर सभागार से बाहर निकले तो फूले से सजी यह बग्घी बाहर खड़ी थी। लेकिन एक चीज अटपटी थी इस बग्घी को खींचने के लिए घोड़े नहीं थे। प्रोफेसर बड़े आश्चर्य के साथ इस बग्घी पर बैठे। अचानक से कुछ छात्र आगे आए और बग्घी को खींचने लगे। उन्हें इसी सवारी पर मैसूर रेलवे स्टेशन छोड़ा गया।

दूसरा किस्सा : चर्चा में रही थी तानाशाह माओ से मुलाकात
किस्सा 1957 का है। उस दौरान डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन उपराष्ट्रपति थे और चीन के दौरे पर गए थे। उनकी मुलाकात उस दौरान चीन के बड़े और प्रसिद्ध नेता माओ से होनी थी। माओ ने राधाकृष्णन को मिलने के लिए अपने घर पर आमंत्रित किया। राधाकृष्णन कुछ भारतीय अधिकारियों के साथ माओ से मिलने उनके घर चुग नान हाई पहुंचे। यहां माओ उनकी अगवानी के लिए अपने आंगन में खड़े थे। आंगन में दाखिल होते ही दोनों नेताओं ने आपस में हाथ मिलाया। इसके बाद राधाकृष्णन ने माओ के गाल को थपथपा दिए। इस बर्ताव पर तानाशाह माओ के कुछ बोलने से पहले राधाकृष्णन ने कहा कि अध्यक्ष महोदय, परेशान मत होइए. मैंने यही स्टालिन और पोप के साथ भी किया है।

तीसरा किस्सा : शाकाहारी राधाकृष्णन की थाली में माओ ने रखा मांसाहार
इसी चीन यात्रा से जुड़ी एक और घटना बेहद दिलचस्प है। माओ और राधाकृष्णन एक साथ बैठकर भोजन कर रहे थे। तभी माओ ने खाते-खाते अपनापन दर्शाने के लिए चॉपस्टिक से अपनी प्लेट से खाने का एक कौर उठा कर राधाकृष्णन की प्लेट में रख दिया। दिलचस्प बात यह है कि माओ को नहीं पता था कि राधाकृष्णन शाकाहारी हैं। माओ के इस प्यार का राधाकृष्णन ने भी सम्मान किया। उन्होंने ऐसा माओ को अहसास नहीं होने दिया कि उन्होंने कोई गलती की है।

चौथा किस्सा: पश्चिम के दर्शन पर जबरदस्त पकड़, हावर्ड यूनिवर्सिटी में दिया भाषण अगले दिन सुर्खियां बना
बात 1926 की है। हावर्ड यूनिवर्सिटी में इंटरनेशनल कांग्रेस ऑफ़ फिलोसफी का आयोजन था। राधाकृष्णन ने इसमें भाग लिया। यहां दिए गए लेक्चर अगले दिन के अखबारों की सुर्खियां बन गया। पश्चिम के कई दर्शनशास्त्री इस बात से हैरान थे कि भारत का कोई दार्शनिक पश्चिम के दर्शन पर इतनी अच्छी पकड़ रखता है। राधाकृष्णन ने पश्चिम को उनकी भाषा में भारतीय दर्शन समझना शुरू किया और यह बहुत असरदार साबित हुआ। 1926 में उनकी पुस्तक ‘हिंदू व्यू ऑफ़ लाइफ’ ऑक्सफोर्ड युनिवर्सिटी प्रेस से छप कर आई.। 1929 में आई पुस्तक ‘An Idealist View of Life’ आई। इन दो पुस्तकों ने उन्हें पश्चिम में अच्छी पहचान दिलाई। नतीजा यह हुआ कि शिक्षा के क्षेत्र में उनका नाम 1931 से 1935 तक लगातार पांच बार नोबेल सम्मान के लिए नामांकित किया गया।

पांचवा किस्सा : यूं हुई शिक्षक दिवस की शुरुआत
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जब भारत के राष्ट्रपति बने तो उनके कुछ छात्रों ने उनका जन्मदिन मनाना चाहा। उन्होंने जवाब दिया कि मेरा जन्मदिन मनाने की बजाए अगर 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाए तो यह मेरे लिए गर्व की बात है। उनके सम्मान में तब से शिक्षक दिवस हर साल मनाया जाता है। जब राधाकृष्णन भारत के राष्ट्रपति बने तो दुनिया के महान दर्शनशास्त्रियों में से एक बर्टेंड रसेल ने काफी प्रसन्नता जाहिर की। उन्होंने कहा कि डॉ.राधाकृष्णन का भारत का राष्ट्रपति बनना दर्शनशास्त्र के लिए सम्मान की बात है और एक दर्शनशास्त्री होने के नाते मुझे काफी प्रसन्नता हो रही है।

छठा किस्सा : राज्यसभा में आक्रोश के बीच सुनाते हैं श्लोक
उपराष्ट्रपति के तौर पर राधाकृष्णन ने राज्य सभा सत्रों की अध्यक्षता भी की। वे शांत स्वभाव के व्यक्ति थे। जब कभी भी सदस्यों के बीच आक्रोश पाया जाता तो वे उनको संस्कृत या बाइबिल के श्लोक सुनाने लगते थे। इस तरह से वे सदस्यों को शांत कराते थे। उनकी इस खूबी को लोग काफी पसंद करते थे।

Source – Dainik Bhaskar

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