अगर सोशल मीडिया इस्तेमाल करते हैं तो आईटी एक्ट में ऐसे कई बदलाव होने जा रहे हैं जिन्हें जानना आपके लिए बेहद ज़रूरी है…
मोदी सरकार ने फेक न्यूज़, अफवाह और ऑनलाइन ठगी के मामलों से निपटने के लिए आईटी एक्ट-2011 में संशोधन करने की तैयारी पूरी कर ली है. संशोधित कानून की धारा-79 में कई ऐसे बदलाव किए जा रहे हैं जिनके बारे में जान लेना बेहद ज़रूरी है. बदलाव वाला एक ड्राफ्ट आईटी मंत्रालय की वेबसाइट पर भी जारी किया गया है जिस पर एक्सपर्ट, आईटी प्रोफेशनल समेत जनता से 15 जनवरी तक राय मांगी गई है.
नए कानून का नाम इंफोर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट 2018 होगा और ऐसी सभी सोशल मीडिया कंपनी जिसके 50 लाख से ज्यादा यूजर्स हैं, उन्हें कंपनीज एक्ट के तहत भारत में रजिस्ट्रेशन कराना होगा और एक नोडल अधिकारी की नियुक्ति भी करनी होगी. इस नए नियम के मुताबिक सोशल मीडिया कंपनियों की भारत सरकार के प्रति जवाबदेही तय हो जाएगी. फिलहाल क़ानून में ऐसी सीधी जवाबदेही तय करने का कोई प्रावधान मौजूद नहीं है. इन प्रस्तावित रूल्स के लिए संसद की अनुमति की जरूरत नहीं होगी और ये आईटी मिनिस्टर रवि शंकर प्रसाद की स्वीकृति के बाद लागू हो सकेंगे.
कैसे बना है ड्राफ्ट: बता दें कि 2011 वाला आईटी एक्ट जनता की राय के आधार पर बनाया गया था लेकिन नया कानून मिनिस्ट्री ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स एन्ड इंफोर्मेशन टेक्नोलॉजी ने इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया के मेंबर्स, गूगल, फेसबुक, व्हाट्सएप और शेयरचैट जैसी कंपनियों के प्रतिनिधियों से सलाह-मशविरा कर तैयार किया गया है. इन सभी को 7 जनवरी तक तैयार ड्राफ्ट में बदलाव करने के लिए सुझाव देने के लिए भी कहा गया है.
फेक न्यूज पर लगाम: सरकार फेक न्यूज़ और सोशल मीडिया जरिए फ़ैल रही अफवाहों को रोकने के लिए काफी सख्त है. नए कानून के मुताबिक सोशल मीडिया साइट्स को कड़ी प्रक्रिया से गुजरना होगा जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि इस प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल फेक न्यूज फैलाने के लिए नहीं किया जा रहा है. ताकि सोशल मीडिया की किसी खबर से आतंकवाद, कट्टरता, हिंसा और अपराध काे बढ़ावा न मिले.
ड्राफ्ट रूल 3(9): श्रेया सिंघल जजमेंट 2015 को आधार बनाकर इस बदलाव को शामिल किया गया है. इस बदलाव के बाद सोशल मीडिया साइट्स को ये तय करना होगा के उनके जरिए किसी भी तरह की ‘unlawful’ (गैरकानूनी) एक्टिविटी को अंजाम नहीं दिया जा रहा हो. इसके लिए उन्हें उन्नत तकनीक का सहारा लेने की सलाह दी गई है. हालांकि ये माना गया है कि फेसबुक-गूगल जैसे बड़े प्लेयर्स के लिए ये काफी मुश्किल काम है लेकिन इसके जरिए ‘विवादित कंटेंट’ के फैलने की जिम्मेदारी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की जवाबदेही में शामिल की गई है.
ड्राफ्ट रूल 3(5): इस बदलाव के मुताबिक सोशल मीडिया कंपनियों क तय करना होगा कि ऐसे इसी कंटेंट को ‘ट्रेस‘ किया जा सके और इसके लिए एंड टू एंड एन्क्रिप्शन का बहाना नहीं बनाया जाएगा. इस बदलाव में सरकार ने सपष्ट कर दिया है कि सोशल प्लेटफॉर्म्स को ऐसे मैसेज के सोर्स ट्रेस करने में मदद करनी ही होगी जिनके जरिए हिंसा फैलाई गई है. नए नियम के मुताबिक लॉ एन्फोर्समेंट एजेंसीज से शिकायत मिलने के 72 घंटे के अंदर कंपनियों को ट्रेस करना होगा कि वह आपत्तिजनक संदेश कहां से तैयार हुआ है.
ड्राफ्ट रूल 3(8): फिलहाल सोशल मीडिया कंपनियां डिलीट किया हुआ डेटा 90 से 180 दिनों तक सेव रखती हैं लेकिन बदलाव के बाद अगर ‘सरकारी एजेंसियां’ चाहे तो किसी ख़ास डेटा को ज्यादा वक़्त के लिए सर्वर पर सेव रखवा सकती हैं. इसके अलावा 24 घंटे कं अंदर आपत्तिजनक कंटेंट की एक्सेस डिलीट करनी होगी, यानी ऐसा संदेश जो अपमानजनक हो या राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति खतरा पैदा करे, उसे 24 घंटे के अंदर लोगों की पहुंच से बाहर करना ज़रूरी होगा।
ड्राफ्ट रूल 3(4): सोशल मीडिया कंपनियों को हर महीने अपने ग्राहकों को प्राइवेसी पॉलिसी से जुड़े नियम व शर्तें और कानून साझा करने होंगे. इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन के मुताबिक इससे ऑनलाइन अब्यूज और ट्रोलिंग से जुड़े क़ानूनों के बारे में लोगों में समझ पैदा हो सकेगी. इसके अलावा जिस सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पांच लाख से अधिक यूजर्स हैं, उसे भारत में कंपनीज एक्ट के तहत खुद को रजिस्टर कराना होगा. कंपनियों को देश में एक नोडल ऑफिसर भी तैनात करना होगा जो 24*7 कानून निर्माण एजेंसीज से संपर्क में रहेगा.
शुरू हुआ विरोध: हालांकि सोशल एक्टिविस्ट्स और विपक्षी दलों ने इस कदम का विरोध करते हुए इसे नागरिकों की जासूसी करने की एक और कोशिश बताया है. एक्टविस्ट्स ने इस कदम पर यह कहते गंभीर चिंता जताई कि पिछले गुरुवार को जारी किए गए होम मिनिस्ट्री के नोटिफिकेशन के साथ जोड़कर देखें तो आईटी ऐक्ट के एक मौजूदा नियम के तहत ये नई इंटरमीडियरी गाइडलाइंस भारत को एक निगरानी करने वाले देश में बदल देंगी.
साइबर कानून विशेषज्ञ पवन दुग्गल ने कहा कि इनमें से कुछ बदलाव भारत के अपने ऐंटी एन्क्रिप्शन कानून के समान हैं. उन्होंने कहा कि 50 लाख से अधिक ग्राहकों वाली सोशल साइट्स के लिए भारत में स्थायी कार्यालय रखना और कानूनी एजेंसियों के साथ काम करने के लिए नोडल अधिकारी नियुक्त करना आसान नहीं है. डिजिटल अधिकार कार्यकर्ता निखिल पाहवा ने कहा कि आईटी कानून में जिन बदलावों का प्रस्ताव किया गया है, वे नागरिकों, लोकतंत्र और अभिव्यक्ति के लिए ‘हानिकारक’ हैं इसमें गैरकानूनी सूचना या सामग्री को परिभाषित नहीं किया गया है.
Source- Hindi News 18