लेबर रूम में पति को पेशेंट के साथ जाने क्यों नहीं देते डॉक्टर?

एक्ट्रेस छवि मित्तल हुसैन दूसरी बार मां बनी हैं. अभी-अभी उनका एक बेटा हुआ है. छवि ने अपनी प्रेग्नेंसी में भी पूरे नौ महीने काम किया. और प्रेग्नेंसी से जुड़ी बातें और अपने अनुभव भी सोशल मीडिया पर शेयर करती रही हैं. बेटे के जन्म के बाद उन्होंने इंस्टाग्राम पर एक लंबा मैसेज लिखा है.

छवि ने इस पोस्ट में डिलिवरी का अपना एक्सपीरियंस शेयर किया है. उन्होंने लिखा कि जिस अस्पताल में उनकी डिलिवरी हुई वहां डॉक्टर ने उनके पति को ऑपरेशन थियेटर में आने से रोक दिया. उन्होंने डॉक्टर्स को कंविंस करने की कोशिश की, लेकिन डॉक्टर्स ने ऐसा करने से साफ मना कर दिया. हालांकि, बाद में डॉक्टर ने उनके पति को लेबर रूम में उनके साथ जाने की इजाज़त दे दी थी. उनकी इस पोस्ट ने सोशल मीडिया पर नई बहस शुरू हो गई है.

छवि के इस पोस्ट पर लोगों के कई रिएक्शन आ रहे हैं. कुछ इसे डॉक्टर्स की बेदर्दी बता रहे हैं, वहीं कुछ यूजर्स का कहना है कि रिलेटिव्स को ओटी में जाने देने से डॉक्टर्स का काम प्रभावित होता है. हमने इस बारे में हाल ही में मां बनी कुछ महिलाओं और डॉक्टर्स से बात की. उन्होंने हमें ये बातें बताईं.

दिल्ली के एक सरकारी अस्पताल की एक गायकोनोलॉजिस्ट ने बताया कि बड़े प्रायवेट अस्पतालों में कुछ हद तक ये संभव है, क्योंकि वहां हर पेशेंट के पीछे एक डॉक्टर और एक नर्स उपलब्ध होते हैं. वहां प्रायवेट लेबर रूम भी होते हैं. लेकिन सरकारी अस्पताल के सेटअप में ये पॉसिबल ही नहीं है कि पेशेंट की मां या पति को लेबर रूम में जाने दिया जाए. इसके दो बड़े कारण हैं.

पहला, दिल्ली की बात करें तो किसी भी सरकारी अस्पताल में 24 घंटे में औसतन 50 से 60 डिलिवरी होती है. एक वक्त पर सात से आठ महिलाएं लेबर पेन में होती हैं. ऐसे में उनकी प्रायवेसी के साथ समझौता नहीं किया जा सकता.

दूसरा, नॉर्मल डिलिवरी की बात तो ठीक है, लेकिन हाई रिस्क डिलिवरी में ज्यादा ऑब्जर्वेशन और मॉनिटरिंग की जरूरत होती है. आमतौर पर रिलेटिव्स डॉक्टर्स से को-ऑपरेट करने की जगह उन्हें डिस्टर्ब ज्यादा करते हैं.

मेडियोर हॉस्पिटल की गायकोनोलॉजिस्ट आशा शर्मा ने बताया कि विदेशों में प्रेगनेंट महिलाओं और उनके पति को प्रीनेटल क्लासेस दी जाती हैं. इन क्लासेस में डिलिवरी के टाइम की सिचुएशन, दिक्कतें और दर्द के बारे में बताया जाता है. इंडिया में आमतौर पर कपल ये क्लासेस नहीं लेते हैं. ऐसे में गर्भवती महिला के साथ उनके पति को लेबर रूम में रखने पर उनसे कोऑपरेशन मिलने की संभावना कम और पैनिक क्रिएट करने की ज्यादा होती है. डॉक्टर्स को देखना होता है कि लेबर रूम में जा रहा इंसान इस चीज के लिए तैयार है कि नहीं. कई बार बच्चा डिलिवर कर रही महिला से ज्यादा उसका पति पैनिक हो जाता है. ऐसे में टीम के लिए प्रॉब्लम क्रिएट हो जाती है.

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डिलिवरी के एक्सपीरियंस जानने के लिए हमने हैदराबाद में रहने वाली एक हाउस वाइफ से बात की. उन्होंने कहा कि वो चाहती थीं कि डिलिवरी के टाइम उनके पति उनके साथ रहें, लेकिन अस्पताल में व्यवस्था न होने की वजह से वो ऐसा नहीं हो सका. उन्होंने ये भी बताया कि दर्द से ज्यादा उन्हें डॉक्टर्स की डांट सुनकर रोना आ रहा था. उन्हें महसूस हो रहा था कि दर्द के बीच अनजान लोगों की भीड़ में उनका कोई अपना वहां होता.

हालांकि, एक अन्य हाउस वाइफ का एक्सपीरियंस इससे काफी उलट था. उन्होंने बताया कि उनके पहले बच्चे की डिलिवरी सरकारी अस्पताल में हुई थी. उन्हें लगता है कि लेबर रूम में पति या किसी करीबी का न होना डिलिवरी को आसान बनाता है. क्योंकि पति या मां को देखकर औरत खुद को ज्यादा दर्द में महसूस करने लगती है. बच्चे को बाहर लाने के लिए पुश करने की कोशिश भी बंद कर देती हैं. जिसके बाद डॉक्टर का काम और मुश्किल हो जाता है. डॉक्टर्स जानते हैं कि डिलिवरी कैसे करानी है. कई बार इलाज के दौरान मौजूद रिश्तेदार डॉक्टर को धीरे से, आराम से काम करने की सलाह देने लगते हैं.

Source – Odd Nari

   
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