जब मैं छोटा था तब से सुनता आ रहा हूं कि प्यार इस दुनिया का सबसे खूबसूरत एहसास है। बचपन की दहलीज़ को पार कर जब यौवन में कदम रखा तो इसे महसूस भी किया लेकिन जल्द ही हकीकत ने मुझे सपनों की दुनिया से निकालकर औंधे मुंह पटक दिया।
मैंने देखा कि जो भी मैं फिल्मों और गानों में सुनता व देखता आ रहा था, हमारा समाज उससे एकदम उलट है। 21वीं सदी के इस भारत में आज भी लोग प्यार के ऊपर जाति अथवा धर्म को ही तरज़ीह देते हैं। यही नहीं, हमारे समाज में आज भी ऑनर किलिंग जैसी घटनाएं बड़े स्तर पर हो रही हैं और हमें इसकी परवाह तक नहीं।
जब से मैंने एक रीजनल न्यूज़ चैनल में काम करना शुरू किया है, तब से रोज़ प्यार करने वालों की हत्या की खबरेंं सुन-सुनकर ही मेरा दिन गुज़रता है। दिमाग यह सोचने पर मजबूर हो जाता है कि क्या किसी इंसान को मार देना इतना ही आसान है? क्या चुनाव के दौरान भारत में बदलाव की बातें महज़ एक धोखा हैं? क्या हमारी शिक्षा प्रणाली एकदम फेल हो गई है? यह कुछ ऐसे सवाल हैं जो हर वक्त मेरे मन में घूमते रहते हैं।
क्या प्यार करना गुनाह है?
हमारे माता-पिता और हमारा परिवार हमारी ज़िंदगी का सबसे अहम हिस्सा हैं और होने भी चाहिए लेकिन क्या उन्हें किसी की जान लेने या हमें प्यार करने से रोकने का हक है? अगर हम अपने दिल की बात अपने माता पिता से ही नहीं कर सकते तो अब हम किसके पास जाएं?
आज नफरत और जातिवाद की राजनीति ने प्यार को और कठिन बना दिया है। एक मुसलमान होने के नाते मैं किसी और जाति की लड़की से प्यार करना तो दूर, बात तक नहीं कर सकता क्योंकि मैं फौरन या तो ‘लव जिहादी’ बन जाऊंगा या फिर कोई ठग।
प्यार के मामले में परिवार भी अलग हो जाता है
मैं समझता हूं कि जाति या धर्म के मामले में मतभेद स्वाभाविक है और इसकी संभावना अधिक है कि प्रेमी जोड़ा इस बात के बोझ तले अपने रिश्ते को तोड़ दे और ऐसे में माता-पिता और अन्य करीबी लोगों को उनका मार्गदर्शन करना और उनको अपनी राय बताना ना सिर्फ उनका हक है बल्कि ज़रूरी भी है, लेकिन क्या आप किसी पर ज़बरदस्ती दबाव बनाकर उनसे उनका रिश्ता तुड़वा सकते हैं। हमें एक समाज के रूप में अपनी हदों को समझना होगा।
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मुझे हैरानी होती है कि ‘राधा-कृष्ण’, ‘राम-सीता’ और ‘शिव-पार्वती’ जिनकी यह देश पूजा करता है और जिनकी प्यार की कहानियां टीवी पर देख-देखकर हम सभी बड़े हुए, उन्हीं के देश में प्यार आज भी जातिवाद और धर्म के सामने कमज़ोर है। वैलेंटाइन्स डे के दिन धर्म का चोला पहनकर प्रेमी जोड़ों की पिटाई करने वाले काश एक बार उस धर्म में प्यार की महानता का ज्ञान ले पाते।
उनके लाठी-डंडों के सामने कानून व प्रशासन एकदम लाचार दिखाई देता है। हैरानी की बात तो यह है कि पढ़े-लिखे लोग भी सोशल मीडिया पर इन दलों को लेकर चुटकुले ओर मीम बनाकर हंसते हैं।
मुझे यह सब सोचने पर मजबूर कर देता है कि क्या हम लोकतंत्र की महानता को समझते हैं? क्या हम लोकतंत्र के लायक हैं और सबसे बड़ा सवाल कि क्या हमारा लोकतंत्र जीवित रहेगा? मेरे पास इन सब सवालों के जवाब नहीं हैं मगर मैं इतना ज़रूर जानता हूं कि बहुत से लोग अपने प्यार से दूर रह जाते हैं इसलिए नहीं कि वो एक-दूसरे के कम्पेटिबल नहीं है या दोनों के इंट्रेस्ट अलग हैं बल्कि इसलिए कि उनकी जाति और धर्म मेल नहीं खाता।
ये समस्या कैसे दूर होगी यह तो मैं नहीं जनता लेकिन कुछ उपाय हम कर सकते हैं। हमें लाठी-डंडे लेकर निकलने वाले इन लोगों पर तुरंत प्रतिबंध की मांग करनी चाहिए। अपने लोकतान्त्रिक अधिकारों के बारे में जानकारी हासिल करनी चाहिए। सरकार और प्रशासन को उनके काम के प्रति सवाल पूछना चाहिए और अपनी शिक्षा प्रणाली को ठीक करना चाहिए और मिलकर प्यार करना और करने देना चाहिए। क्योंकि प्यार से खूबसूरत सच में कुछ नहीं।
Source – Yooth Ki Awaj
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