जिस ऱफ़्तार से व़क़्त बदल रही है, उससे भी कहीं तेज़ी से बदल रही है हमारी लाइफ़स्टाइल, जिसने न स़िर्फ बड़ों, बल्कि मासूम बच्चों को भी तनाव, अवसाद का शिकार बना दिया है और उनकी रातों की नींद तक ग़ायब कर दी है… अब बड़े ही नहीं, बच्चे भी नींद न आने की बीमारियों से जूझ रहे हैं.
मां की लोरियां सुनकर सोना तो ख़ैर अब बीते ज़माने की बात होती जा रही हैं, क्योंकि आज की कामकाजी मां के पास न तो बच्चे को लोरी सुनाने का समय है और न ही आज के बच्चों को इसमें कोई रुचि है. उनके पास चटपटे कार्यक्रम परोसता टेलीविज़न, इंटरनेट या फिर मोबाइल फ़ोन जो है… और बच्चों की इन हरकतों पर अफ़सोस करने का भी हमें कोई हक़ नहीं है, क्योंकि बच्चों को ये सारी सुख-सुविधाएं या यूं कह लें मन बहलाव के साधन हमने ही मुहैया कराए हैं. आज के कामकाजी माता-पिता के पास बच्चों के लिए पर्याप्त समय तो होता नहीं, ऐसे में अपना अपराधबोध दूर करने के लिए वो बच्चों को तमाम लक्ज़री आइटम ख़रीदकर दे देते हैं, बिना ये सोचे-समझे कि इनका बच्चों के शारीरिक-मानसिक विकास पर क्या असर पड़ेगा. आज ख़ासकर बड़े शहरों के ज़्यादातर घरों में खाने, सोने, मनोरंजन की आदतें इतनी बेतरतीब हो गई हैं कि इसका सीधा असर परिवार के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है और इससे सबसे ज़्यादा प्रभावित हो रहे हैं मासूम बच्चे. वे जाने-अनजाने नींद न आने की तमाम बीमारियों से जूझ रहे हैं.
श्‍वेता (परिवर्तित नाम) सातवीं कक्षा में पढ़ती है. उसके अब तक के परफॉर्मेंस से न केवल उसके माता-पिता, बल्कि टीचर भी काफ़ी ख़ुश थे. लेकिन पिछले कुछ महीनों से उसका पढ़ाई में मन नहीं लग रहा. टीचर ने कई बार जब उसे स्कूल में सोते पाया, तो उसके माता-पिता से शिकायत की. माता-पिता भी जब उसकी हरकतों से परेशान हो गए तो मनोचिकित्सक को दिखाया. उन्होंने सबसे पहले उसकी दिनचर्या का अध्ययन किया, तो पाया कि श्‍वेता रात एक-डेढ़ बजे तक टीवी सीरियल देखती थी और फिर दूसरे दिन स्कूल जाने के लिए उसे सुबह 6 बजे उठना पड़ता था. इस तरह रूटीन बिगड़ जाने से उसमें चिड़चिड़ापन भी आ गया था और उसका पढ़ाई में मन नहीं लगता था. श्‍वेता पढ़ाई में अच्छी थी, इसलिए माता-पिता उसकी हरकतों पर ध्यान ही नहीं देते थे. माता-पिता की इसी लापरवाही ने श्‍वेता को देर रात तक टीवी देखने की छूट दे दी और उसका पढ़ाई में से मन हटने लगा.
ख़ैर, श्‍वेता के माता-पिता ने तो व़क़्त रहते उसकी आदतों, दिनचर्या में बदलाव लाकर उसे संभाल लिया, लेकिन कई माता-पिता तो जान भी नहीं पाते कि उनके बच्चे को नींद न आने का कारण क्या है? कई घरों के बच्चे नींद में बड़बड़ाते हैं, डरावने सपने देखकर चीखते-चिल्लाते हैं, नींद में ही चलने लगते हैं, लेकिन माता-पिता इसे बच्चे की आदत समझकर नज़रअंदाज़ कर देते हैं और बच्चे का रोग बढ़ता ही चला जाता है. नतीजा- न स़िर्फ बच्चे की नींद पूरी नहीं होती, बल्कि कई बार उसका शारीरिक-मानसिक विकास तक रुक जाता है. बच्चों के लिए पर्याप्त नींद कितनी ज़रूरी है बता रहे हैं- चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉ. समीर दलवाई.
डॉ. दलवाई के अनुसार, “पर्याप्त नींद हमारे लिए बेहद ज़रूरी है, क्योंकि नींद से हमारे शारीरिक व मानसिक विकास पर प्रभाव पड़ता है. सोने से ज़्यादा हार्मोन सक्रिय होते हैं, जिससे व्यक्तिगत विकास अच्छा होता है. ख़ासकर बच्चों के शारीरिक-मानसिक विकास पर नींद का बहुत असर पड़ता है. नींद पूरी न होने से बच्चे का विकास धीमा या फिर रुक सकता है. उम्र के हिसाब से बच्चे को भरपूर नींद मिलनी ही चाहिए, जैसे- पैदा होने के कुछ समय तक बच्चे का 20 घंटे सोना ज़रूरी है. इसी तरह 2 साल तक 12 से 14 घंटे, 2 से 5 साल तक 12 घंटे, 6 से 12 साल तक 10 घंटे और 12 साल के बाद 9 घंटे की नींद लेनी ही चाहिए.
Source-Meri saheli
   
Railway Employee (App) Rail News Center ( App) Railway Question Bank ( App) Cover art  

Railway Mutual Transfer (App)

Information Center  ( App)
 
Disclaimer: The Information /News /Video provided in this Platform has been collected from different sources. We Believe that “Knowledge Is Power” and our aim is to create general awareness among people and make them powerful through easily accessible Information. NOTE: We do not take any responsibility of authenticity of Information/News/Videos.
Share

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *