क्या कभी आपने सोचा है कि वास्तु दोष से भी वैवाहिक बाधाएं उत्पन्न हो सकती हैं? मगर ये सच है, तो आइए जानते हैं वास्तु की सहायता से कैसे करें इन अड़चनों को दूर?
* वास्तु नियमों के अनुसार वायव्य कोण वायु तत्व का प्रतिनिधित्व करता है, जिसका गुणधर्म तत्काल या यथाशीघ्र एक स्थान से हटकर दूसरे स्थान में चले जाना है.
* वास्तु नियमों के अनुसार दिशा, स्वामी और ग्रह देवता की उपयोगिता की दृष्टि से अगर हम अपने घर का उपयोग करें, तो गृहस्वामी सहित उसकेमाता-पिता और बेटे-बेटियां अपने जीवन में सही समय पर सब कुछ प्राप्त कर सकते हैं.
* यदि आपके घर का वास्तु सही है, तो आपकी बेटी बिना असमंजस के सही निर्णय ले सकेगी. उसकी शादी भी समय पर अच्छी तरह से हो सकती है.
* कई बार प्रेम-विवाह के मामलेे मेेें लड़कियां ग़लत निर्णय ले लेती हैं और बाद में सिवाए पछतावे के कुछ हाथ नहीं आता. अतः बेटी की बेहतर निर्णय क्षमता के लिए बेटी का कमरा माता-पिता के कमरे के पूर्व की दिशा में रखना चाहिए.
* जहां तक संभव हो, बेटी को उसके अपने कमरे में सोने दें. यही नहीं उसकी पढ़ने की दिशा भी पूर्व दिशा होनी चाहिए. इसके अलावा उसके कमरे में रचनात्मक, सुंदर और आकर्षक पेंटिंग लगी होनी चाहिए, जिन्हें देखकर उसमें आत्मविश्‍वास की भावना पनपे.
* कमरे में गहरे या भड़काऊ पर्दे न हों. पर्याप्त रोशनी हो. जहां तक हो, लाल रंग का प्रयोग कम-से-कम करें. यदि संभव हो, तो पीले रंग का प्रयोग करें.
* कुछ घरों में देखा जाता है कि कमरे को खोलने से लेकर शयनकक्ष तक जाने में कहीं सोफे में पैर अटकता है तो कहीं-कहीं दरवाज़ा खोलने में आलमारी रुकावट बनती है. यह ठीक नहीं, बल्कि घर की व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए जो सुगम हो, आपका हर क़दम सुगमता से पड़े, इससे आपकी मानसिकता प्रभावित होती है.
* वास्तु संतुलन का इसलिए भी विशेष महत्व है कि माता-पिता के व्यवस्थित रहने और उनके घर का वास्तु सही रहने का प्रभाव बेटी की शादी और उसके सुखी जीवन पर भी पड़ता है. बेटी के घर मेेें कितना भी वैभव हो, अगर बेटी के माता-पिता परेशान हैं, उनका वास्तु ग़लत है, तो बेटी के दांपत्य पर उसका प्रभाव पड़ेगा.
* शोधों से यह प्रमाणित हुआ है कि जिस घर में माता-पिता परेशान थे या जिनके घर का वास्तु असंतुलित था, उन बेटियों का दांपत्य जीवन भी मुश्किल दौर से गुज़रता है, इसलिए अपने घर के वास्तु संतुलन पर पूरा ध्यान दें.
वास्तु के अनुसार वैवाहिक स्थल
* ध्यान दें कि वैवाहिक स्थल का मुख्य प्रवेशद्वार पूर्व ईशान, दक्षिण आग्नेय, पश्‍चिम वायव्य या उत्तर ईशान में होना चाहिए.
* वैवाहिक परिसर में जनरेटर, विद्युत मीटर, अन्य विद्युत उपकरण इत्यादि की व्यवस्था आग्नेय कोण में करनी चाहिए.
* दूल्हा-दुलहन के बैठने एवं आर्केस्ट्रा के लिए स्टेज की व्यवस्था दक्षिण से पश्‍चिम मध्य के बीच वास्तु सिद्धांत के अनुसार हो, जहां दूूल्हा-दुलहन पूर्व या उत्तर की ओर मुंह करके बैठ सकें.
* विवाह का अग्नि कुंड रिसेप्शन एरिया के आग्नेय कोण में रखना चाहिए. रसोई बनाने का स्थान एवं तंदूर भी रसोेई परिसर के आग्नेय कोण में ही रखें.
* भोजन की व्यवस्था उत्तर या पश्‍चिम में रखनी चाहिए. खाने-पीने के स्टॉल का क्रम क्लॉक वाइज ही रखें.
सलाद एवं प्लेट्स रखने का स्टॉल समारोह क मध्य में नहीं रखें. परिसर व गार्डन के मध्य का ब्रह्म स्थान खाली रहना चाहिए.
Source – Meri saheli
   
Railway Employee (App) Rail News Center ( App) Railway Question Bank ( App) Cover art  

Railway Mutual Transfer (App)

Information Center  ( App)
 
Disclaimer: The Information /News /Video provided in this Platform has been collected from different sources. We Believe that “Knowledge Is Power” and our aim is to create general awareness among people and make them powerful through easily accessible Information. NOTE: We do not take any responsibility of authenticity of Information/News/Videos.
Share

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *