अपने सरप्राइज मैथ टैस्ट के समय 6 वर्षीय राजेश ने भी अपनी शीट टीचर के पास जमा कराई. लेकिन, उस के नंबर उस की रातभर की पढ़ाई के मुताबिक नहीं थे. फीकी सी मुसकान के साथ वह अपने बाकी सभी दोस्तों के साथ ग्राउंड में खेलने के लिए निकल गया, पर वहां भी तेज न भाग पाने के कारण वह सभी से पीछे ही रहा.
राजेश के दोस्त उसे कभी पढ़ाई के लिए तो कभी खेलों में आगे आने को कहते रहते थे, लेकिन दिनबदिन इन दोनों ही चीजों में उस की सम झ पहले से ज्यादा धीमी हो रही थी. बिना किसी बीमारी के लक्षणों के उस की स्थिति का पता लगाना मुश्किल था. डाक्टरों के अच्छी तरह जांच करने पर पता चला कि राजेश आयोडीन की कमी से ग्रसित है. इस का कारण उस के परिवार का खाने में आयोडीनरहित नमक का इस्तेमाल करना था.
राजेश आयोडीन की कमी से पीडि़त था. उस कमी के लक्षण उस के चीजों को सम झने और करने में संघर्ष करने से साफ देखे जा सकते थे. यह भी जान लें कि विभिन्न खोजों के मुताबिक, आयोडीन से पीडि़त बच्चों के आईक्यू पौइंट्स साधारण बच्चों की तुलना में 13.5 कम पाए गए हैं.
लोग इस बात से अनजान हैं कि आयोडीन की कमी से भारत में 14 फीसदी नवजात शिशु दिमागी और शारीरिक रूप से पीडि़त पैदा हो रहे हैं. इस के अलावा यदि गर्भावस्था के दौरान मां के भोजन में आयोडीन की पर्याप्त मात्रा नहीं होती तो बच्चे के पेट में ही मर जाने की संभावना बढ़ जाती है. साथ ही, बच्चा शारीरिक व मानसिक रूप से अपंग पैदा हो सकता है.
आयोडीन की कमी के प्रभाव
वर्ल्ड हैल्थ और्गेनाइजेशन यानी डब्लूएचओ के अनुसार, आयोडीन डैफिशिएंसी डिसऔर्डर्स यानी आईडीडी अर्थात आयोडीन की कमी से होने वाली बीमारियां विश्वभर में मानसिक विकलांगता या ब्रेन डैमेज का सब से बड़ा कारण हैं. आईडीडी से व्यक्ति को गलगंड, हाइपोथायराइडिज्म या अवटू अल्पक्रियता या जड़मानवता, क्रेटिनिज्म, ब्रेन डैमेज, इंटैलेक्चुअल डिसेबिलिटी अर्थात दिमागी अपंगता, साइकोमोटर डिफैक्ट्स, जैसी बीमारियां हो सकती हैं.
डब्लूएचओ के मुताबिक आयोडीन की कमी अधिकतर बच्चों में होती है जिस से वे मानसिक रूप से कमजोर होने लगते हैं. ऐसे बच्चे किसी स्थिति में तर्कसंगत रूप से विचार नहीं कर सकते. नतीजतन, इन्हें भोंदू, बेवकूफ, गधा और कभीकभी पागल जैसे नामों से पुकारा जाने लगता है.
अधिकतर गांवदेहातों जहां लड़कियों को मुश्किल से स्कूल भेजा जाता है उन में कोई लड़की पढ़नेलिखने में धीमी या बाकी बच्चों से पिछड़ी हुई नजर आती है तो उस के मांबाप उसे स्कूल से निकालने में ज्यादा समय नहीं लेते. आंकड़ों की भयावह स्थिति को देखें तो भारत में एक करोड़ से ज्यादा नवजात बच्चे आईडीडी से ग्रस्त होने की स्थिति में हैं.
क्या है आयोडीन
आयोडीन एक ऐसा अनिवार्य सूक्ष्म पोषक तत्त्व है जिस का प्रतिदिन सेवन करना आवश्यक है. जलवायु परिवर्तन, ग्लेशियर्स के लगातार पिघलने, पेड़ों की धुआंधार कटाई, लगातार आती बाढ़ इत्यादि के कारण मिट्टी की ऊपरी परत से आयोडीन, जोकि पानी में घुलनशील होता है, के समुद में बह जाने से फसलें आयोडीन के बिना उपजने लगी हैं. यह आयोडीन की कमी का सब से बड़ा कारण है.
भारत के आयोडीनमैन कहे जाने वाले डा. चंद्रकांत एस पांडव कहते हैं, ‘‘नमक हमारे जीवन में केवल खाने का हिस्सा मात्र नहीं है. नमक मनुष्य में आयोडीन का एक अच्छा साधन भी है जिस का सभी लोगों द्वारा बड़ी मात्रा में सेवन किया जाता है. नमक को आयोडीन नमक में बदलने यानी आयोडीनाइजेशन से उस की रंगत, सुगंध या स्वाद में कोई खासा बदलाव नहीं आता. आयोडीनाइजेशन सरल, इफैक्टिव और कम मूल्य में होने वाली प्रक्रिया है. भारत में कुछ ही राज्यों में नमक बनाया जाता है जिस से इस की गुणवत्ता बरकरार रखना आसान हो जाता है. नमक शारीरिक क्रिया विज्ञान के अनुरूप पर्याप्त मात्रा में आयोडीन की खपत को पूरा करता है जोकि दैनिक 150 मिलीग्राम है.’’
आयोडीनाइजेशन में पोटैशियम फैरोसाइनाइड यानी पीएफसी को ले कर लोगों में यह भ्रम है कि इस से उन की जान को खतरा हो सकता है. इस पर डा. चंद्रकांत एस पांडव का कहना है कि पीएफसी नमक बनने के दौरान एंटीकेकिंग एजेंट के रूप में कार्य करता है जिस से नमक में गुच्छे नहीं बनते. मुख्यरूप से पीएफसी साइनाइड नहीं है, लेकिन पीएफसी में साइनाइड ग्रुप्स अवश्य हैं, जिस के कण मजबूती से एकदूसरे से जुड़े हुए होते हैं और खाना पकाते समय या मनुष्य के शरीर में जाने पर नहीं टूटते.
आयोडीनाइजेशन में पीएफसी की बहुत छोटी मात्रा इस्तेमाल में लाई जाती है जिस से इसे ग्रहण करने वाले की सेहत कभी भी रिस्क में नहीं होती. जो छोटी मात्रा इस्तेमाल में लाई जाती है, वह बिना कोई नुकसान पहुंचाए यूरिन द्वारा शरीर से निकल जाती है.
आयोडीन का महत्त्व
बच्चों और गर्भवती महिलाओं के भोजन में आयोडीन पर्याप्त मात्रा में होना जरूरी है. गर्भावस्था में आयोडीन 200-250 माइक्रोग्राम प्रतिदिन ग्रहण करना अनिवार्य है. मनुष्य के दिमाग का 90 फीसदी भाग उस के जीवन के पहले हजार दिनों में विकसित होता है और जैसा कि डब्लूएचओ सुनिश्चित कर चुका है कि आयोडीन की कमी विश्व में मानसिक अपंगता का सब से बड़ी वजह है, इसलिए आयोडीन का सेवन अति आवश्यक हो जाता है.
1960 में आईसीएमआर के बेसलाइन सर्वे के अनुसार, नागालैंड भारत का आयोडीन की कमी से होने वाले रोगों का स्थानिक राज्य माना गया. यहां आयोडीन की कमी से होने वाला घेंघा रोग 34.3 फीसदी तक फैला हुआ था. घेंघा आयोडीन की कमी से होने वाला रोग है जिस के चलते गले में सूजन आ जाती है. राज्य सरकार के लगातार प्रयासों के बाद हालिया सर्वे में सामने आया कि घेंघा रोग में एक प्रतिशत गिरावट आई है. इस से साफ है कि किस तरह इस रोग की व्यापकता को थामने में सालों लग गए.
यह खुशी की बात होने के साथसाथ हम सभी के लिए एक चेतावनी भी है कि आयोडीन के पर्याप्त सेवन से हम खुद को और आने वाली पीढि़यों को आयोडीन की कमी से होने वाले घातक रोगों से मुक्त कर सकते हैं. आयोडीन की कमी से होने वाली बीमारियों के शुरुआती लक्षण सम झ पाना और इन बीमारियों की चपेट में आ जाने के बाद इन से लड़ पाना मुश्किल है, लेकिन वक्त रहते इन से बचाव किया जा सकता है.
सेंधा नमक का सच
आयोडीनयुक्त नमक का महत्त्व और जरूरत सम झने के बावजूद लोगों के बीच आयोडीन रहित नमक के इस्तेमाल पर जोर दिया जा रहा है. उदाहरण के तौर पर सेंधा नमक को ही ले लीजिए. वर्तमान में सेंधा नमक जिसे रौक सौल्ट कहते हैं, का प्रचारप्रसार सब से ज्यादा सेहतपूर्ण नमक के रूप में किया जा रहा है. सभी लोग सेंधा नमक को साधारण नमक या कहें आयोडीनयुक्त नमक की जगह इस्तेमाल करने की सलाह दे रहे हैं.डा. चंद्रकांत एस पांडव कहते हैं कि इस में आयोडीन की मात्रा न के बराबर होती है और मेरा मानना है कि आप हमेशा आयोडीनयुक्त ही नमक का सेवन करें.
आयोडीनयुक्त नमक को महत्त्वपूर्ण न सम झने वाले लोग अपनी सेहत के साथसाथ अपने बच्चों की सेहत से भी खिलवाड़ करते हैं जिन में आयोडीन की कमी के लक्षण तब पता लगते हैं जब बहुत देर हो चुकी होती है. लोगों को यह सम झना जरूरी है कि आयोडीन की कमी से होने वाली भयावह बीमारियों को आयोडीन नमक ही दूर कर सकता है और रोक सकता है, कोई सेंधा या उपवास अनुकूल नमक नहीं
Source – Sarita
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