सेक्सुअल हैरेसमेंट से बचने के लिए अपनाएं ये सेफ्टी गाइडलाइन्स

क्या है सेक्सुअल हैरेसमेंट?
किसी भी तरह के ग़लत इशारे करना, ग़लत व्यवहार या टिप्पणी करना, ज़बर्दस्ती शारीरिक संबंध बनाना या बनाने के लिए कहना, शारीरिक बनावट या कपड़ों पर टिप्पणी करना, कामुक साहित्य दिखाना आदि सेक्सुअल हैरेसमेंट का हिस्सा हैं.

हर महिला को पता हो यह क़ानून
साल 1997 में सुप्रीम कोर्ट ने वर्कप्लेस पर महिलाओं की सुरक्षा के लिए विशाखा गाइडलाइन्स के नाम से 13 गाइडलाइन्स जारी की थीं, जिन्हें साल 2013 में क़ानून का रूप दे दिया गया. अब ये गाइडलाइन्स सेक्सुअल हैरेसमेंट ऑफ वुमेन एट वर्कप्लेस एक्ट, 2013 का रूप ले चुकी हैं. इस एक्ट में सेक्सुअल हैरेसमेंट को परिभाषित किया गया है, साथ ही उससे बचाव और उत्पीड़न की स्थिति में होनेवाली कार्रवाई का उल्लेख किया गया है.

– सबसे ज़रूरी बात, जो हर महिला को पता होनी चाहिए, वो यह कि जिस भी संस्थान में 10 या 10 से ज़्यादा कर्मचारी काम करते हैं, वहां एम्प्लॉयर को इंटरनल कंप्लेंट्स कमिटी (आईसीसी) बनाना अनिवार्य है, जिसमें 50% महिलाएं शामिल हों.

– इसके अलावा हर ज़िले में लोकल कंप्लेंट्स कमिटी हो, ताकि जिन कर्मचारियों के संस्थान में आईसीसी नहीं है, वो यहां शिकायत दर्ज कर सकें.

वर्कप्लेस पर सेफ्टी के लिए क्या करें महिलाएं?
आजकल शायद ही ऐसा कोई घर हो, जहां कोई महिला कामकाजी न हो. घर से बाहर निकलकर काम करने के लिए उपयुक्त माहौल मिले, इसके लिए उन्हें ही सतर्क और जागरूक रहना होगा.

– अगर आपको लगता है कि आपके वर्कप्लेस पर कुछ पुरुषों के कारण या किसी एक व्यक्ति के कारण आप असहज महसूस कर रही हैं, तो सबसे पहले उसे ख़ुद आगाह करें.

– अगर वो फिर भी अपनी हरकतों से बाज़ न आए, तो ऑफिस की इंटरनल कंप्लेंट्स कमिटी (आईसीसी) में शिकायत करने से न हिचकिचाएं.

– अगर ऑफिस में आईसीसी नहीं है, तो मैनेजमेंट में उसकी शिकायत करें या फिर आप लोकल कंप्लेंट्स कमिटी में भी शिकायत कर सकती हैं.

– अगर मैनेजमेंट उसी की तरफ़दारी करे, तो ऐसी जगह काम करने से बेहतर होगा कि आप कंपनी छोड़ दें.

– अगर कोई आपको ग़लत मैसेज भेजता है, तो उसका स्क्रीनशॉट लेकर रख लें, ताकि शिकायत करते व़क्त सबूत के तौर पर दे सकें.

– फोन कॉल्स की रिकॉर्डिंग करके भी आप उस व्यक्ति के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा सकती हैं.

– अपने ऑफिस रूटीन के बारे में पैरेंट्स या पार्टनर को हमेशा बताकर रखें, ताकि कभी देर-सबेर होने पर वो पूछताछ कर सकें.

– अपने ऑफिस और सहकर्मियों के मोबाइल नंबर पैरेंट्स या पार्टनर के पास भी सेव करके रखें, ताकि ज़रूरत पड़ने पर संपर्क किया जा सके.

घर से बाहर सेफ्टी का यूं रखें ख़्याल
– अजनबी लोगों पर किसी भी तरह का भरोसा न करें. ऐसे लोगों के साथ ट्रैवल भी न करें.

– जब भी अकेले हों, सावधान रहें. आपकी बॉडी लैंग्वेज और चाल में भी कॉन्फिडेंस होना चाहिए.

– अगर रात को ऑफिस से निकलने में देरी हो जाती है, तो ट्रैवलिंग के लिए हाई हील्स न पहनें. ऐसे जूते या चप्पल पहनें, जिनमें मुसीबत के व़क्त भाग सकें.

– अगर रात को ऑफिस या अपनी बिल्डिंग में लिफ्ट में जाना सेफ नहीं लगता, तो सीढ़ियों से जाएं.

– कभी किसी अनजान से लिफ्ट न लें.

– अकेले ऑटो या टैक्सी लेने की बजाय शेयरिंग में जाएं, पर अगर आपको ज़रा भी गाड़ी का माहौल संदिग्ध लगे, तो उसमें बिल्कुल न जाएं.

– ट्रैवलिंग के दौरान किसी अजनबी या सहयात्री से अपना फोन नंबर या कोई और डिटेल शेयर न करें.

– रास्ते में पैदल चलते हुए म्यूज़िक सुनना है, तो धीमी आवाज़ पर सुनें, ताकि अगल-बगल में हो रही एक्टीविटीज़ के बारे में पता चलता रहे.

– अगर रात को देर से ट्रैवल करती हैं, तो अपने पर्स में हमेशा पेपर स्प्रे रखें. अगर पेपर स्प्रे नहीं हैं, तो इमर्जेंसी में आप डियो का भी इस्तेमाल कर सकती हैं.

– दिन हो या रात, अगर कोई आपका पीछा कर रहा है, तो अपना रास्ता बदल दें और फोन करके तुरंत अपनों को सूचित करें.

– अपने मोबाइल फोन की बैटरी हमेशा चार्ज रखें, ताकि इमर्जेंसी में संपर्क साधने में द़िक्क़त न हो.

– हो सके तो पर्सनल सेफ्टी से जुड़े कुछ गुर सीख लें.

– घर के अंदर भी अगर किसी रिश्तेदार की हरकतें आपको आपत्तिजनक लगती हैं, तो तुरंत पैरेंट्स या पार्टनर को बताएं.

सेक्सुअल हैरेसमेंट क़ानून में है बदलाव की ज़रूरत
– सबसे पहले तो यह क़ानून केवल महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाया गया है, जबकि आजकल पुरुषों के उत्पीड़न की ख़बरें समाचार-पत्रों की सुर्ख़ियां बन रही हैं. इसमें पुरुषों की सुरक्षा को भी शामिल करना चाहिए.

– सेक्सुअल हैरेसमेंट की परिभाषा को विस्तृत करने की ज़रूरत है, क्योंकि बदलती टेक्नोलॉजी के इस दौर में हैरेसमेंट के कई नए-नए रूप देखने को मिल रहे हैं.

– आज भी बहुत-से संस्थानों में आईसीसी का गठन नहीं किया गया है, लेकिन उसके बारे में पूछनेवाला कोई नहीं है.

– सोशल मीडिया आज एक प्लेटफॉर्म की तरह काम कर रहा है, ऐसे में ज़रूरी है कि सरकार की आईटी सेल वहां होनेवाली गतिविधियों पर नज़र रखकर मामले को सही डिपार्टमेंट में पहुंचाए, ताकि मामले की सही जांच हो सके.

– लोकल कंप्लेंट्स कमिटी के बारे में लोगों में जागरूकता फैलाई जाए. उसे मज़बूत बनाने के लिए कड़े प्रावधान बनाए जाएं.

– इसके तहत महिलाओं को छूट दी गई है कि वो कभी भी अपने ख़िलाफ़ होनेवाले अन्याय के लिए आवाज़ उठा सकती हैं. इसके लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है, लेकिन इन मामलों में देरी के कारण अपराध साबित कर पाना पुलिस के लिए बहुत मुश्किल हो जाता है. इसके लिए भी क़ानून में कोई प्रावधान होना चाहिए.

Source – Meri Saheli

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