हावड़ा लोकसभा क्षेत्र: देश के पहले सिग्नेचर ब्रिज से पूरे देश में है पहचान

हावड़ा संसदीय क्षेत्र पश्चिम बंगाल की 42 संसदीय सीटों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है. इस संसदीय सीट का गठन 1951 में ही हो गया था. हावड़ा जिला भी है जिसका मुख्यालय हावड़ा है.

क्षेत्र पश्चिम बंगाल का बहुत ही प्रतिष्ठित संसदीय क्षेत्र माना जाता है 42 लोकसभा सीटों में इसका एक अलग ही स्थान है इस संसदीय सीट का गठन 1951 में ही हो गया था.

हावड़ा को कोलकाता से जोड़ने वाला हावड़ा पुल यहीं है जिसका नाम अब रबींद्र सेतु कर दिया गया है लेकिन अब भी यह हावड़ा पुल के नाम से ज्यादा प्रसिद्द है. यह एक कैंटीलीवर पुल है जो 4 खंभों पर टिका हुआ है. यह इस तरह से बनाया गया है कि ऊपर वाहन गुजरते रहें और नीचे हुगली नदी के प्रवाह पर कोई असर न पड़े और वहां से पानी के जहाज निकल सकें.

इस सीट पर भी शहरी मतदाताओं की संख्या ज्यादा है. कांग्रेस, सीपीएम से होते हुए अब इस सीट पर ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस के कब्जा है. 2019 के चुनाव में यहां पर त्रिकोणीय मुकाबला होने की संभावना है. AITC का यहां से सांसद है, सीपीएम दूसरे स्थान पर रही थी और बीजेपी ने अपना पूरा जोर वेस्ट बंगाल में लगा दिया है.

राजनीतिक पृष्ठभूमि

हावड़ा संसदीय सीट जमाने के साथ चलती रही. जीतने वाले उम्मीदवारों को देखें तो पता चलता है कि हवा का रुख किस तरफ है इस सीट से इसका भी पचा चलता रहा. कांग्रेस, सीपीआई, सीपीएम फिर कांग्रेस फिर सीपीएम, WBTC और आखिर में सीपीएम से होते हुए यह सीट आज ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस के पास है.

इस संसदीय क्षेत्र में 1951 में इंडियन नेशनल कांग्रेस के संतोष कुमार दत्ता विजयी हुए उन्होंने सीपीआई के अनिल कुमार सरकार को हराया. 1957 में सीपीआई के मोहम्मद इलियास को विजय मिली उन्होंने कांग्रेस को हरा दिया. 1962 में सीपीआई के मोहम्मद इलियास को ही विजय मिली और कांग्रेस दूसरे स्थान पर रही. 1967 के चुनाव में सीपीआई से यह सीट कांग्रेस ने छीन ली और के. के. चटर्जी यहां से सांसद बने. 1971 के चुनाव तक सीपीएम ने अपनी पकड़ यहां मजबूत बना ली थी और 1971 में सीपीएम के समर मुखर्जी यहां से सांसद चुने गए. 1977 और 1980 में सीपीएम के समर मुखर्जी को ही विजय मिली.

इसके बाद एक बार फिर पासा पलटा. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पूरे देश में एक सहानुभूति की लहर चली थी हालांकि बंगाल इससे अछूता रहा था लेकिन कुछ सीटों पर इस लहर का प्रभाव देखा गया. 1984 में हावड़ा से कांग्रेस के उम्मीदवार प्रियरंजन दास मुंशी ने विजय हासिल कर इतिहास रच दिया लेकिन 1989 में सीपीएम के सुशांत चक्रवर्ती ने प्रियरंजन दास मुंशी को हरा दिया. 1991 में फिर सुशांत ही सांसद  चुने गए और प्रियरंजन दास मुंशी को हार का सामना करना पड़ा.  लेकिन 1996 में प्रिय रंजन दासमुंशी ने पासा पलट दिया और कांग्रेस के टिकट पर सांसद चुने गए. 1998 में एक क्षेत्रीय दल WBTC विक्रम सरकार हावड़ा से सांसद चुने गए. फिर 1999 और 2004 में सीपीएम के स्वदेश चक्रवर्ती को विजय हासिल हुई.

इसके बाद ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस सीपीएम को हाशिए पर लाने में कामयाब दिखने लगी और हावड़ा जैसी प्रतिष्ठित सीट 2009 में ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस ने सीपीएम से छीन ली. हावड़ा से ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस के अंबिका बनर्जी यहां से सांसद चुने गए और सीपीएम के स्वदेश चक्रबर्ती दूसरे स्थान पर रहे. 2013 में यहां पर बाय पोल कराया गया जिसमें ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस के प्रसून बनर्जी को सफलता मिली.

सामाजिक ताना-बाना

2011 की जनगणना के अनुसार हावड़ा जिले की आबादी 2112447 है. इसमें से 92.96 फीसदी आबादी शहरी है बाकी 7.04 फीसदी ग्रामीण. अनुसूचित जाति और जनजाति का रेश्यो यहां पर 9.04 और .3 पर्सेंट है. यहां  पर 1590414 वोटर हैं. यहां की आबादी के घनत्व 2913 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है. हावड़ा का सेक्स रेश्यो 935 है. यहां की साक्षरता दर 83.85 है. पुरुषों की साक्षरता दर 81 फ़ीसदी है जबकि 73 फ़ीसदी महिलाएं साक्षर हैं. यहां की आधिकारिक भाषा बंगाली है जबकि हिंदी और इंग्लिश भी खूब बोली जाती है.

इस संसदीय क्षेत्र में 7 विधानसभा सीटें हैं, इन सातों पर AITC का कब्जा है

1-बैली से वैशाली डालमिया विधायक हैं

2-हावड़ा उत्तर से लक्ष्मी रतन शुक्ला जीते हैं

3-हावड़ा मध्य से अरूप रॉय (अप्पू) को विजय मिली है

4-शिबपुर से जातू लाहिरी विधायक हैं

5-हावड़ा दक्षिण से ब्रजमोहन मजूमदार विधायक हैं

6-संकरेल (एससी) से शीतल कुमार सरदार जीते हैं

7-पंछला से गुलशन मलिक विधायक हैं

2014 का जनादेश

2014 तक आते-आते ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस ने पूरे पश्चिम बंगाल में सीपीएम को हाशिए पर डाल दिया था. लेकिन हावड़ा एक ऐसा संसदीय क्षेत्र था जहां पर 2009 से ही ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस का सांसद था और 2004 से ही पार्टी यहां पर मजबूत थी. 2014 के चुनाव में ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस के प्रसून बनर्जी सांसद चुने गए उन्होंने सीपीएम के श्रीदीप भट्टाचार्य को हराया. प्रसून बनर्जी को 488461 वोट मिले जबकि सीपीएम के श्री भट्टाचार्य को 291505 वोट मिले. AITC को 43.4 फीसदी, सीपीएम को 25.9 फीसदी और बीजेपी को 22.05 फीसदी वोट मिले थे. कांग्रेस यहां 5.62 फीसदी वोट पर ही सिमट गई थी.

सांसद का रिपोर्ट कार्ड

ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस के सांसद प्रसून बनर्जी की 2014 में चुने जाने के समय आयु 63 साल थी. इन्होंने बीएससी की डिग्री ली है और खिलाड़ी रहे हैं. 1980 में खेले गए ओलंपिक में भारतीय फुटबॉल टीम के कैप्टन रह चुके हैं. इन्हें अर्जुन अवॉर्ड मिल चुका है और फुटबॉल की कई असोसिएशन से जुड़े हैं. प्रसून बनर्जी पहले ऐसे फुटबॉलर हैं जो सांसद चुने गए. संसद में इनकी हाजिरी 75.39 फीसदी रही है. इन्होंने कुल 70 सवाल पूछे हैं. कुल 4 डिबेट में हिस्सा लिया है. लेकिन कोई प्राइवेट मेंबर बिल नहीं ला पाए हैं. सांसद विकास निधि के तहत मिले 25 करोड़ रुपये में से इन्होंने 19.49 करोड़ यानि 77.96 फीसदी राशि खर्च कर दी है.

Source – Aaj Tak

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