भुवनेश्वर दुनिया का वह रणक्षेत्र रहा था जहां से अहिंसा का संदेश पूरी दुनिया में गया. ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में इसी जगह पर कलिंग का युद्ध हुआ था. इस युद्ध की विभीषका को देख पाटलिपुत्र सम्राट अशोक ने शस्त्र का त्याग कर दिया और पश्चाताप की अग्नि में जले. साथ ही उन्होंने कभी भी हिंसा ना करने का संकल्प लिया. किवदंतियों के मुताबिक भुवनेश्वर में कभी 7000 मंदिर थे, जिनका निर्माण 700 सालों के कालखंड में हुआ. लेकिन अब केवल 600 मंदिर ही बचे हैं. बौद्ध धर्म का भी यहां अच्छा प्रभाव रहा.
आजादी के बाद भी इस शहर का धार्मिक मिजाज बरकरार रहा. सियासत की बात करें तो यहां पर कांग्रेस और बीजू जनता दल का प्रभाव रहा है. हालांकि सीपीएम ने भी यहां पर तीन बार कामयाबी हासिल कर लोगों की कई बनी-बनाई धारणाएं ध्वस्त कर दी है.
राजनीतिक पृष्ठभूमि
1962 से लेकर 1971 तक इस सीट पर इस सीट पर लगातार कांग्रेस जीतती रही. 1977 में जब देश में कांग्रेस विरोधी लहर थी तो सीपीएम के शिवाजी पटनायक इस सीट से चुनाव जीते. 1980 में कांग्रेस ने फिर वापसी की और चिंतामणि पाणिग्रही विजयी हुए. 84 के लोकसभा चुनाव में पाणिग्रही फिर जीते. लेकिन 1989 आते-आते यहां का समीकरण बदल चुका था.
89 में जब देश में मंदिर आंदोलन ने असर दिखाना शुरु कर दिया, बावजूद इसके सीपीएम के शिवाजी पटनायक यहां से चुनाव जीते. 1991 के लोकसभा चुनाव में उन्हें फिर से जीत हासिल हुई. 1996 का लोकसभा चुनाव हुआ तो मतदाताओं का मिजाज फिर बदला. कांग्रेस के सौम्य रंजन पटनायक इस सीट से चुनाव जीते. ओडिशा और भुवनेश्वर लोकसभा सीट की राजनीति में बड़ा बदलाव तब हुआ जब 26 दिसंबर 1997 को नवीन पटनायक ने बीजू जनता दल बनाया.
1998 में जब लोकसभा चुनाव हुए तो बीजू पटनायक की लोकप्रियता पर सवार और नवीन पटनायक के नेतृत्व में बीजेडी ने शानदार कामयाबी हासिल की. बीजेडी के टिकट पर प्रसन्न कुमार पटसानी चुनाव जीते. 1998 में शुरु हुआ बीजेडी के जीत का सफर इस सीट पर अबतक जारी है. 1998 के बाद 99, 04, 09, 14 के चुनाव में बीजेडी के टिकट पर प्रसन्न कुमार पटसानी चुनाव जीते.
सामाजिक ताना-बाना
भुवनेश्वर लोकसभा क्षेत्र का विस्तार खोर्जा जिले में है. 2011 की जनगणना के मुताबिक यहां की आबादी 18 लाख 86 हजार 793 है. ओडिशा की राजधानी होने की वजह से यहां लगभग आधी आबादी शहरों में रहती है. आंकड़ों के मुताबिक यहां 49.17% जनसंख्या ग्रामीण है, जबकि 50.83 फीसदी आबादी शहरी है. यहां पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की आबादी का अनुपात 13.04 और 5.08 प्रतिशत है.
चुनाव आयोग के 2014 के आंकड़ों के मुताबिक भुवनेश्वर सीट पर कुल 15 लाख 27 हजार 768 मतदाता हैं. इसमें से पुरुष मतदाता 8 लाख 35 हजार 850 हैं. जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 6 लाख 91 हजार 918 है.
2008 के परिसीमन के बाद भुवनेश्वर लोकसभा सीट के तहत 7 विधानसभा की सात सीटें आई. ये सीटें हैं जयदेव, भुवनेश्वर मध्य, भुवनेश्वर उत्तर, एकमारा भुवनेश्वर, जटनी, बेगुनिया, खुरदा. 2014 के विधानसभा चुनाव में इन सभी सीटों पर बीजेडी ने जीत दर्ज की.
2014 का जनादेश
2014 में पूरे देश में भले ही मोदी का जादू चला हो, लेकिन पूरे ओडिशा में नवीन पटनायक का ही जलवा रहा. इस सीट पर प्रसन्न कुमार पटसानी 1 लाख 89 हजार 477 वोटों के मार्जिन से चुनाव जीते. इस चुनाव में उन्हें कुल 4 लाख 39 हजार 252 वोट मिले. बीजेपी के पृथ्वीराज हरिचंदन 2 लाख 49 हजार 775 वोट लाकर तीसरे स्थान पर रहे. कांग्रेस के बिजय मोहंती को 1 लाख 45 हजार 783 वोट मिले. 2014 में यहां पूरे ओडिशा में सबसे कम मतदान हुआ. यहां वोटिंग का प्रतिशत 58.37 रहा.
सांसद का रिपोर्ट कार्ड
आम तौर पर गेरुआ वस्त्र में दिखने वाले प्रसन्न कुमार पटसानी इस वक्त पांचवीं बार भुवनेश्वर लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. 27 अप्रैल 1946 को जन्मे 72 साल के पटसानी ने पीएचडी और डी लिट की डिग्रियां ली हैं. इन्होंने स्विटजरलैंड और दक्षिण अफ्रीका में भी उच्च शिक्षा हासिल की है. पटसानी राजनीति के अलावा खुद को वकील, सामाजिक कार्यकर्ता और लेखक कहते हैं. इनकी कई भाषाओं में किताबें भी प्रकाशित हो चुकी हैं. प्रसन्न पटसानी की पत्नी का नाम विजयलक्ष्मी पटसानी है. इन दोनों को दो बेटे और एक बेटी हैं.
प्रसन्न कुमार पटसानी की लोकसभा में उपस्थिति 75.7 प्रतिशत रही. लोकसभा की कुल 321 बैठकों में से वह 243 दिन मौजूद रहे. सदन में उन्होंने 6 सवाल पूछे. लोकसभा की 43 डिबेट्स में उन्होंने हिस्सा लिया.
Source – Aaj Tak