“हमें एनकाउंटर आरोपियों का नहीं, पितृसत्ता का करना है

हैदराबाद में पशु चिकित्सक का बलात्कार होता है और फिर उसे जला दिया जाता है। इसके बाद लोगों का हुजूम निकलता है, लोग सड़क पर आते हैं, सोशल मीडिया पर आते हैं और संसद में भी इसकी आवाज़ गूंजती है। हर तरह की दलील और बातें होती हैं। कोई कहता है कि फांसी दे दो, तो कोई कहता है न्याय करो।

हर एक की आवाज़ न्याय की गुहार लगाती हुई दिखती है। इसके बाद 6 दिसंबर को पुलिस चारों आरोपियों को एनकाउंटर में मार देती है। एक सुर में लोग पुलिस को नायक बना देते हैं। हमें भीड़ अच्छी लगने लगी है। अब हम न्याय को सड़क पर ही हासिल करना चाहते हैं। हमें बस फिल्म की तरह वह नायक अच्छा लगने लग गया, जो बलात्कारी को गोली मार देता है। हम ताली मारते हैं और इसी को न्याय समझने लगते हैं।

हम अपने घर सदियों से अन्याय करते आए हैं, हम अपनी बेटियों को सिखाते आए हैं कि देर रात उसे घर से बाहर नहीं जाना है। हम उसे बताते हैं कि छोटे कपड़े मत पहनो, क्योंकि तुम्हारे साथ गलत हो सकता है। हम कहते हैं कि देर रात मत घूमो क्योंकि लड़कों का क्या भरोसा? वो तुम्हें परेशान कर सकते हैं और तुम्हारे साथ बलात्कार कर सकते हैं।

हम लड़की के कपड़ों से लेकर उसके लड़के के साथ दोस्ती तक सभी गैर ज़रूरी सवाल करते हैं लेकिन हमें न्याय में फांसी चाहिए। हमें गोली से मार देने वाला न्याय अच्छा लगता है। हम लड़कों को कुछ नहीं सिखाते। हम उन्हें फोन नहीं करते और उनसे नहीं पूछते कि तुम कहां हो क्या कर रहे हो? कब घर आओगे? किसके साथ हो? कुछ गलत तो नहीं कर रहे? शराब तो नहीं पी रहे? लड़की को परेशान तो नहीं रहे?

लेकिन ये सभी सवाल क्यों पूछना, जब अचानक से बलात्कर हो जाने पर उन्हें फांसी की मांग करना हमें पसंद है। अपने घर में चली आ रही पितृसत्तात्मक सोच जिसे हम सींचे जा रहे हैं, वो हमें इतनी पसंद है कि हम अपने घर के लड़कों को कुछ नहीं बोलते।

आज जो हुआ वह कैसे गलत है, वह आप नहीं समझना चाहते, क्योंकि आपके न्याय की परिभाषा अब फांसी देने भर तक की है। आप सऊदी अरब या उन देशों की बात करते हैं, जहां लड़कियों के साथ यौन शोषण होने पर लड़कों को बुरी से बुरी सज़ा मिलती है। अब आप खुद समझिए कि जहां फांसी की सज़ा दी जाती है, वहां क्या बलात्कार नहीं होते हैं? वहां अगर डर होता तो बलात्कार रुक जाते?

भारतीय समाज ऐसा समाज रहा है, जहां लड़की या तो मंदिर में खड़ी मूर्ति है या वह एक मांस का टुकड़ा है। हमारे देश में जब मैरिटल बलात्कार की बात होती है तो लोग चुप हो जाते हैं। जब बात बच्चों के साथ रेप की होती है तो यही समाज फांसी तो दूर अपने बच्चों को नसीहत देता है कि वो चुप रहें।

आंकड़ों के अनुसार बलात्कार के केस में ज़्यादातर आरोपी उनके अपने परिचित होते हैं। अब बताए कि कैसे फांसी इंसाफ करेगा। हमारा समाज जो अपने आपको घोर पारिवारिक बताता है, वह क्या अपने परिजन के खिलाफ जाएगा?

फांसी न्याय कैसे होगी, जब सर्वाइवर के साथ किए बलात्कार को आप समझते हैं कि उसकी इज्ज़त चली गई। उसके अंगों में आप अपने घर की इज्ज़त डालते हैं, उसको ही आप आरोपी बना देते हैं, उसके बाद आप न्याय की गुहार कैसे लगा सकते हैं।

हमारे समाज को ज़रूरत है कि हर लड़की के साथ की जाने वाली यौन हिंसा की FIR दर्ज हो। पुलिस संवेदनशील हो और सर्वाइवर के साथ कोई फालतू के सवाल ना पूछे जाए। हमें न्यायिक व्यवस्था में सुधार लाना होगा। हमें एनकाउंटर आरोपियों का नहीं बल्कि पितृसत्ता का करना है, उसे खत्म करना है। बेटी बचाओ नहीं बेटो को पढ़ाओ को इस्तेमाल में लाना होगा।

Source – Yooth Ki Awaz

   
Railway Employee (App) Rail News Center ( App) Railway Question Bank ( App) Cover art  

Railway Mutual Transfer (App)

Information Center  ( App)
 
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