सुप्रीम कोर्ट ने सर्वसम्मति से सुनाया फैसला, ट्रस्ट करेगा मंदिर का निर्माण

अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि विवादित ढांचे की जमीन हिंदुओं को दी जाए. CJI रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच ने शनिवार को इस मामले में फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने अपने अहम फैसले में कहा कि मुसलमानों को मस्जिद के लिए दूसरी जगह मिलेगी. 5 न्यायाधीशों की बेंच ने 16 अक्टूबर को इस मामले की सुनवाई पूरी की थी. संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एसए बोबडे, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर भी शामिल रहे. पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने, अयोध्या में 2.77 एकड़ विवादित भूमि तीन पक्षकारों-सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान- के बीच बराबर-बराबर बांटने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर 6 अगस्त से सुनवाई शुरू की थी.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि विवादित ढांचे की जमीन हिंदुओं को दी जाए. 2.77 एकड़ ज़मीन हिन्दुओं के पक्ष में रहेगी. शीर्ष कोर्ट ने कहा कि राम मंदिर के लिए केंद्र सरकार तीन महीने के अंदर ट्रस्ट बनाएगी. ट्रस्ट में निर्मोही अखाड़ा का प्रतिनिधि भी रहेगा. सुप्रीम कोर्ट ने रामलला विराजमान को मालिकाना हक दिया. अदालत ने इसके साथ यही भी माना देवता एक कानूनी व्यक्ति हैं.

खास बात यह रही कि सभी जजों ने सर्वसम्मति से यह फैसला दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हम सबूतों के आधार पर फैसला करते हैं. मुसलमानों को मस्जिद के लिए दूसरी जगह मिलेगी. केंद्र या राज्य सरकार अयोध्या में ही मस्जिद के लिए सुटेबल और प्रॉमिनेंट जगह पर जमीन दे. फैसले के अनुसार, अधिग्रहीत जमीन फिलहाल रिसीवर के पास रहेगी. सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ ज़मीन मिलेगी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 1992 में बाबरी मस्जिद को ढहाना और 1949 में मूर्तियां रखना गैरकानूनी था.. CJI रंजन गोगोई ने कहा, मुस्लिम पक्ष सुनवाई के दौरान यह साबित नहीं कर पाया कि उनके पास ज़मीन का मालिकाना हक था. मुस्लिमों का बाहरी अहाते पर अधिकार नहीं रहा. सुन्नी वक्फ बोर्ड यह सबूत नहीं दे पाया कि यहां उसका एक्सक्लूसिव अधिकार था.

अदालत के मुताबिक, इस बात के सबूत पेश किए गए कि हिन्दू बाहरी अहाते में पूजा किया करते थे. 1856-57 से पहले आंतरिक अहाते में हिन्दुओं पर कोई रोक नहीं थी. 1856-57 के संघर्ष ने शांतिपूर्ण पूजा की अनुमति देने के लिए एक रेलिंग की स्थापना की. सुन्नी बोर्ड का यह कहना है कि बाबरी मस्जिद के निर्माण से ढहाए जाने तक नमाज पढ़ी जाती थी. बाहरी प्रांगण में हिंदुओं द्वारा पूजा का एक सुसंगत पैटर्न था. दोनों धर्मों द्वारा शांतिपूर्ण पूजा सुनिश्चित करने के लिए एक रेलिंग की स्थापना की गई. चीफ जस्टिस ने कहा, ASI रिपोर्ट के मुताबिक नीचे मंदिर था.

Source – NDTV

   
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