क्या महिलाओं को सच में मेंस्ट्रुअल लीव की ज़रूरत है?

पिछले एक-दो दशकों में भारत के कई क्षेत्रों में अभूतपूर्व क्रांतिकारी विकास सहित सकारात्मक परिवर्तन हुए हैं। उम्मीद है कि आने वाले समय में विकास और परिवर्तनों की इस सूची में इज़ाफा होगा।

हालांकि अभी भी कई ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर भारतीय समाज में एक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष चुप्पी देखने को मिलती है। इनमें से ही एक है माहवारी, जिसे पीरियड/मासिक धर्म/ मेंस्ट्रुएशन/मेंस आदि कई प्रचलित नामों से जाना जाता है। ये तमाम शब्द और इनसे संबंधित शब्दावली से आज भी भारतीय समाज का एक बड़ा तबका या तो अपरिचित है या फिर इसके बारे में खुलकर बात करने से हिचकिचाता है। यहां तक कि महिलाएं भी आपस में इस मुद्दे पर खुसर-फुसर करके ही बतियाते देखी जाती हैं।

आज भी भारत के अधिकांश कार्यालयों, कार्यों तथा नीतियों को यहां के पुरुष-सत्तात्मक समाज को ध्यान में रखकर डिज़ाइन किया जाता है। यही वजह है कि ज़्यादातर महिलाएं इस माहौल में खुद को सहज और सुरक्षित महसूस नहीं कर पाती हैं। हर वक्त उन पर इसका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष दबाव हावी रहता है।

अब समय आ गया है कि कार्यस्थलों को वुमेन फ्रेंडली बनाया जाए, ताकि महिलाएं अपनी कार्यक्षमता का भरपूर उपयोग करें और अपना बेस्ट आउटपुट दे पाएं।

गत वर्ष जनवरी में अरुणाचल प्रदेश के सांसद निनॉन्ग एरिंग द्वारा लोकसभा में ‘मेंस्ट्रुएशन बेनिफिट बिल-2017’ पेश किया गया। इसमें यह मांग की गई कि चाहे सरकारी हो या गैर-सरकारी, सभी तरह के कार्यस्थलों में मेंस्ट्रृअल लीव पॉलिसी को लागू किया जाना चाहिए।
इस पॉलिसी के तहत यह प्रावधान निर्धारित है कि सभी महिलाकर्मियों को हर महीने दो दिनों की मेंस्ट्रुअल लीव दी जाए।

इसके पीछे तर्क यह है कि महिलाओं की जैविकीय संरचना पुरुषों से भिन्न होती है। हर महीने होने वाली माहवारी की प्रक्रिया के दौरान ज़्यादातर महिलाओं को तीव्र शारीरिक दर्द, थकान, मिचलाहट, भारी रक्तस्राव और बैचेनी जैसी समस्याओं से गुज़रना पड़ता है। इन लक्षणों को ‘प्री-मेंस्ट्रुअल सिंड्रोम’ (PMS) कहा जाता है। इस वजह से इस दौरान उनकी कार्यक्षमता और जीवन गुणवत्ता नकारात्मक रूप से प्रभावित होती है।

वर्ष 2016 में यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में रिप्रोडक्टिव हेल्थ विभाग के प्रोफेसर जॉन गुलिबॉड द्वारा किए गए अपने एक अध्ययन के अनुसार,

महिलाओं को पीरियड के दौरान होने वाले दर्द, जिसे डिस्मेनोरिया या मेंस्ट्रुअल क्रैंप्स भी कहते हैं की तीव्रता हार्ट अटैक के दौरान होने वाले दर्द से भी कहीं ज़्यादा होती है।

यहीं नहीं इस दर्द के कारण Menorrhagia, Endometriosis, Fibroids, Pelvic Inflammatory Disease आदि जैसी कई अन्य समस्याओं के होने की खतरा भी रहता है।

वुमेंस नेशनल हेल्थ सर्विस फाउंडेशन ट्रस्ट की रिपोर्ट की माने तो,

भारत में पीरियड पेन की वजह से करीब 20 फीसदी महिलाओं की दिनचर्या बाधित हो जाती है।

ऐसे लोगों को यह बात समझनी होगी कि मेंस्ट्रुअल क्रैंप्स कोई ऐसी स्थिति नहीं है, जिसे महिलाएं चाहें तो वह हो और ना चाहें, तो वह ना हो। यह तो प्राकृतिक शारिरिक प्रक्रिया है, जिसकी फ्रीक्वेंसी हर महिला में अलग-अलग होती है। अगर इस वजह से कोई महिला कार्य करने में खुद को असमर्थ महसूस कर रही हो, तो निश्चित रूप से उसे मेंस्ट्रुअसल लीव मिलनी ही चाहिए।

कई शोध अध्ययन भी यह दर्शाते हैं कि पीरियड के दौरान विभिन्न प्रकार के शारीरिक और मानसिक तनाव की वजह से महिलाओं की कार्यक्षमता कम हो जाती है। ऐसे में इस दौरान छुट्टी लेने से संस्थान के उत्पादन या देश की आर्थिक व्यवस्था पर कोई फर्क भी नहीं पड़ने वाला।

यह भी जानें-
मिस्र की राजधानी कायरो में स्थित डिजिटल मार्केटिंग की एक कंपनी शार्क एंड श्रिम्प ने सबसे पहले अपने यहां कार्यरत महिला कर्मचारियों को हर महीने उनके पीरियड के दौरान एक दिन पेड लीव देने की शुरुआत की। इसके लिए उन्हें किसी तरह का मेडिकल प्रूफ देने की ज़रूरत नहीं थी।
वर्ष 1947 में जापान में एक कानून लागू किया गया, जिसके तहत महिला कर्मचारियों को पीरियड के दौरान छुट्टी लेने की छूट दी गई।
इसी तरह इंडोनेशिया और ताइवान में भी द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद महिला कमर्चारियों के लिए मेंस्ट्रुअल लीव के प्रावधान लागू किए गए।
दक्षिण कोरिया में वर्ष 2001 से महिला कमर्चारियों को मेंस्ट्रुअल लीव दिया जा रहा है।
भारत की बात करें, तो यहां वर्ष 1912 से ही केरल के एक गर्ल्स स्कूल में मेंस्ट्रुअल लीव दिए जाने का प्रावधान लागू है।
वहीं आज़ाद भारत में सबसे पहले बिहार में 1992 में प्रत्येक सरकारी कार्यालय में कार्यरत महिला कर्मचारियों को हर महीने दो दिनों का मेंस्ट्रुअल लीव दिए जाने का प्रावधान लागू किया गया लेकिन इस बारे में बहुत कम ही लोगों को पता है।
दो साल पहले 2017 में मुंबई आधारित एक डिजिटल मीडिया कंपनी ‘कल्चर मशीन’ ने जब अपने यहां की महिला कर्मचारियों को पीरियड के पहले दिन मेंस्ट्रुअल लीव देने का प्रावधान तय किया, तो एक बार फिर से इस मुद्दे पर बहस शुरू हो गई। यही नहीं इस कंपनी की कुछ महिला कर्मचारियों ने इस संबंध में change.org पर एक पेटीशन भी लॉन्च किया, जिसमें केंद्रीय मंत्री मेनका गॉंधी और मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावेडकर से ‘मेंस्ट्रुअल लीव पॉलिसी’ का प्रावधान लागू करने की सिफारिश की।

Source – Yooth Ki Awaaz

   
Railway Employee (App) Rail News Center ( App) Railway Question Bank ( App) Cover art  

Railway Mutual Transfer (App)

Information Center  ( App)
 
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