करगिल युद्ध की महिला हीरो: गुंजन और श्रीविद्या, जिन्होंने सैकड़ों जवानों की जान बचाई थी

20 साल पहले भारत और पाकिस्तान के बीच, कश्मीर के करगिल में एक जंग हुई थी. इसे करगिल युद्ध कहते हैं. साल 1999 में हुई ये जंग करीब 3 महीने तक चली थी. 3 मई से 26 जुलाई तक, दोनों देशों के जवान एक-दूसरे से लड़ते रहे थे. आखिर में भारत को जीत मिल गई थी. इस जंग को 20 साल पूरे हो चुके हैं.

इंडियन आर्मी और एयर फोर्स ने मिलकर ये जंग लड़ी थी. इंडियन नेवी भी पूरी तरह से तैयार थी. ये जंग 1999 में हुई थी, उस वक्त औरतों को युद्ध में नहीं भेजा जाता था, लेकिन फिर भी उस लड़ाई में दो एयर फोर्स ऑफिसर्स ऐसी थीं, जिन्होंने जंग में हिस्सा लिया. और जंग वाले इलाके के ऊपर विमान उड़ाया. सैनिकों की मदद की. इन दो अधिकारियों का नाम है- गुंजन सक्सेना और श्रीविद्या राजन.

ये दोनों ही वॉर ज़ोन में उड़ान भरने वाली पहली महिला आईएएफ (इंडियन एयर फोर्स) अधिकारी हैं. करगिल वॉर ज़ोन में इन्होंने विमान उड़ाया था. सीमा पर लड़ रहे सैनिकों की मदद के लिए इन दोनों महिलाओं को भेजा गया था. दोनों महिलाएं विमान से राशन देने जंग वाली जगह पर जातीं, घायल सैनिकों को लातीं और पाकिस्तान की पोजीशन पर नजर रखतीं थीं.

ट्रेनी पायलेट के तौर पर इनकी एंट्री हुई थी.

गुंजन को बचपन से ही सेना में जाने का मन था. उनके पिता और भाई, दोनों इंडियन आर्मी में ही थे, इसलिए गुंजन भी सेना में जाने की प्लानिंग कर रही थीं. उन्हें विमान उड़ाने का मन भी था. इसलिए ग्रेजुएशन के बाद दिल्ली के सफदरजंग फ्लाइंग क्लब में विमान उड़ाने के बेसिक्स भी सीखे.

1994 से वायु सेना में महिला ट्रेनी पायलेटों को लिया जाना शुरू हुआ. 25 महिला ट्रेनी पायलटों को लिया गया. उनमें गुंजन और श्रीविद्या भी थीं. उस वक्त महिलाओं को वॉर ज़ोन में विमान नहीं उड़ाने दिया जाता था. कारण ये दिया जाता था कि शारीरिक और मानसिक, दोनों ही तौर पर बहुत ज्यादा तनाव होता है, तो महिलाएं झेल नहीं पाएंगी. इस सोच की वजह से गुंजन और श्रीविद्या के पास खुद को साबित करने के मौके कम ही थे. उन्हें सही मौके का इंतजार था. मौका मिला, साल 1999 में. तब करगिल का युद्ध छिड़ गया.

युद्ध के वक्त इंडियन आर्मी को पायलेट्स की जरूरत पड़ी. फिर मुसीबत के वक्त महिला पायलेट्स को बुलाया गया. एयर फोर्स ने गुंजन और श्रीविद्या को वॉर ज़ोन में भेजने के लिए चुना. दोनों को जिम्मेदारी दी गई, कि जंग लड़ रहे सैनिकों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहें. घायल सैनिकों की मदद करें. उन्हें रेस्क्यू करें. विमान के जरिए, हवा में रहते हुए, वॉर ज़ोन पर पैनी नजर रखें. पाकिस्तानी सैनिकों की पोजीशंस पर नजर रखें. आर्मी यूनिट को अगर किसी चीज़ की जरूरत पड़े, तो उन्हें तुरंत वो चीज़ ले जाकर दी जाए.

वॉर ज़ोन में विमान उड़ाते वक्त कई बार गुंजन और श्रीविद्या के ऊपर पाकिस्तान की तरफ से अटैक भी हुआ था. लेकिन वो लोग खुद को और अपने विमान को किसी तरह बचाने में कामयाब रहीं. कई बार विमान उड़ाते वक्त, उन्हें पहाड़ों के टेढ़े-मेढ़े रास्तों से गुजरना पड़ता था, वो गुजरीं. कई बार दोनों के विमान क्रैश होते-होते बचे. दोनों चीता हेलिकॉप्टर्स उड़ा रही थीं. जिसमें ज्यादा हथियार भी नहीं थे, और जो दुश्मनों के अटैक से बचा भी नहीं सकता था, लेकिन फिर भी दोनों औरतों ने कदम पीछे नहीं हटाए.

गुंजन ने एक न्यूज़ चैनल को दिए इंटरव्यू में बताया था, कि उन्हें घायल जवानों की मदद करके सबसे ज्यादा सुकून मिलता था. गुंजन ने कहा था,

‘मुझे लगता है कि एक हेलिकॉप्टर पायलेट होने के नाते, आपको सबसे ज्यादा सुकून इस वक्त ही मिलता है. वो हमारा सबसे अहम काम था. मैं कहूंगी कि किसी की जिंदगी बचाकर जो फीलिंग आती है, वो सबसे ज्यादा संतुष्टी देती है. इसी जिम्मेदारी को निभाने के लिए तो हम लोग जंग में थे.’

गुंजन ने चॉपर पायलेट के तौर पर, 7 साल तक एयर फोर्स में सर्विस दी. करगिल युद्ध में बिना डरे, अपना काम करने के कारण उन्हें शौर्य चक्र अवॉर्ड भी दिया गया. गुंजन पहली भारतीय महिला थीं, जिन्हें ये अवॉर्ड मिला था.

गुंजन और श्रीविद्या, दोनों ने कभी लड़ाकू विमान नहीं उड़ाए थे, लेकिन दोनों ने ही करगिल युद्ध में बहुत अहम काम किया था. भले ही लोग उन्हें उस तरह से याद नहीं करते, जिस तरह से किसी सैनिक को करते हैं, लेकिन सच्चाई तो ये ही है कि इन दोनों औरतों ने युद्ध के वक्त सैंकड़ों जिंदगियां बचाई थीं.

Source – Odd Nari

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