चांद जैसी गोल रोटी बनाना सिर्फ औरत की जिम्मेदारी क्यों?

‘खाना बनाना सीख लो, पति को क्या खिलाओगी’, ‘यहां तो चल जाएगा, लेकिन ससुराल में खाना कौन बनाएगा’, ‘हर काम के लिए मेड रख सकती हो, लेकिन खाना तो खुद ही बनाना पड़ेगा न’. ये बातें उन लड़कियों को सुनने को मिलती हैं, जिन्हें खाना बनाना नहीं आता, या जो खाना बनाना नहीं पसंद करतीं. किसी न किसी तरीके से उन्हें ये समझाने की कोशिश की जाती है, कि एक औरत तभी मुकम्मल हो सकती है, जब वो लजीज व्यंजन बनाने का हुनर रखती हो.

खाना बनाना आता है?

लड़की चाहे स्टूडेंट हो या वर्किंग. ‘खाना बनाना आता है’ सवाल उसका पीछा नहीं छोड़ता. लगभग हर लड़की से जिंदगी में कम से कम एक बार ये सवाल जरूर पूछा गया होगा. उम्मीद की जाती है कि औरत है, तो पकवान बनाने में निपुण होगी ही. कम से कम गोल रोटी तो बनानी आती ही हो. अगर ऐसा नहीं है, तो उसमें कमी है. उसके औरत होने में कमी है. वो बाकी औरतों से कमतर मानी जाती है. वो जरूरत से ज्यादा ‘मॉडर्न’ और आलसी मानी जाती है.

पति के दिल का रास्ता पेट से जाता है

अरेंज मैरिज में देखने-दिखाने के प्रोग्राम में लड़की से पूछे जाने वाले अहम सवालों में से एक सवाल होता है कि क्या खाना बनाना आता है. अगर वो न कह दे, तो उसे सलाह के नाम पर निर्देश मिलता है, ‘बनाना सीख लो’. क्योंकि आप जिंदगी में कितना भी कुछ हासिल कर चुकी हो, लेकिन मैरिज के टेस्ट में क्वालिफाई करने के लिए सिर्फ सुंदर दिखना काफी नहीं. आपके अंदर एक संजीव कपूर होना भी जरूरी है. दरअसल पति नहीं पूरे ससुराल वालों का दिल का रास्ता पेट से होकर ही जाता है.

टीवी की आदर्श बहू

टीवी सीरियल और फिल्मों में भी अच्छी कुक और आदर्श बहू का कॉन्सेप्ट देखने को मिलता है. ‘अक्षरा’, ‘इशिता’ से लेकर ‘गोपी बहू’ तक सभी बिजनेस में पति का हाथ बंटाने के साथ पूरे परिवार के लिए खाना पकाती दिखती हैं. उनकी आदर्श बहू की इमेज का एक पहलू ये भी है. सीरियल में खाना नहीं पकाने वाली महिला का कैरेक्टर ग्रे शेड या वैम्प का होता है. या फिर उसे कॉमेडी कैरेक्टर की तरह दिखाया जाता है.

कुकिंग विज्ञापनों में भी औरतें

जब असल जिंदगी और टीवी में भी औरतें ही खाना बनाती दिखती हैं, तो विज्ञापन भी उससे अछूते नहीं हैं. आमतौर पर रसोई से जुड़े विज्ञापनों में भी महिला मॉडल होती हैं. संजीव कपूर और एमडीएच वाले अंकल के अलावा शायद ही कोई विज्ञापन हो, जिसमें मेल मॉडल मसाले और प्रेशर कुकर बेचता दिखे.

आदमी चूल्हा-चौका करता अच्छा क्यों नहीं लगता

औरत चाहे डॉक्टर, वकील, इंजीनियर, एक्ट्रेस, पत्रकार या कुछ भी हो, अगर खाना पकाना जानती है, तभी सर्वगुण संपन्न है. हालांकि कुकिंग का स्टीरियोटाइप जितना औरतों के लिए कठोर है, उतना ही मर्दों के लिए भी जटिल है. जिस तरह परफेक्ट औरत को खाना बनाना आना चाहिए, उसी तरह परफेक्ट मर्द का कुकिंग से कोई लेना-देना नहीं होना चाहिए. किचन में घुसने और खाना बनाने वाले मर्दों को फेमिनिस्ट माना जाता है. इस इमेज की वजह से कई मर्द चाहकर भी खाना बनाना, किचन में घुसना नहीं चाहते हैं.

Source – Odd Nari

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