नॉर्मल डिलीवरी (सामान्य प्रसव) के लिए 11 टिप्स

गर्भधारण के बाद हर महिला के मन में यह सवाल ज़रूर उठता है कि उसकी नॉर्मल डिलीवरी होगी या सिज़ेरियन डिलीवरी। आमतौर पर डॉक्टर नॉर्मल डिलीवरी कराने की सलाह देते हैं। गर्भवती महिला या होने वाले शिशु को किसी तरह की शारीरिक परेशानी होने पर सिज़ेरियन डिलीवरी कराने की सलाह दी जाती है।

हालांकि, पिछले कुछ सालों में ऐसी गर्भवती महिलाओं की तादाद तेज़ी से बढ़ी है, जो डिलीवरी के समय होने वाले दर्द से बचने के लिए सिज़ेरियन डिलीवरी का विकल्प चुनती हैं। नेशनल हेल्थ फ़ैमिली सर्वे (साल 2015-16) के आंकड़ों के अनुसार, पिछले पांच सालों में देश के शहरी इलाकों में 28.3 प्रतिशत महिलाओं ने सी-सेक्शन के ज़रिए डिलीवरी कराने का विकल्प चुना है। वहीं गांव-देहात के इलाकों में 12.9 प्रतिशत महिलाओं ने सी-सेक्शन से डिलीवरी कराई है। जबकि, साल 2005-06 में कुल सिज़ेरियन डिलीवरी (शहर और गांव दोनों जगहों पर हुई सिज़ेरियन डिलीवरी) का आंकड़ा महज़ 8.5 प्रतिशत ही था।

भले ही नॉर्मल डिलीवरी की प्रक्रिया में गर्भवती महिलाओं को काफ़ी दर्द होता है, लेकिन सेहत के लिहाज़ से इसे सिज़ेरियन डिलीवरी से बेहतर माना जाता है। आज मॉमजंक्शन के इस लेख में हम आपको नॉर्मल डिलीवरी से जुड़े सवालों के जवाब देने की कोशिश करेंगे।

नॉर्मल डिलीवरी क्या है?

यह प्रसव या डिलीवरी की एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें शिशु का जन्म महिला के योनि मार्ग से प्राकृतिक तरीके से होता है। अगर गर्भावस्था में किसी तरह की चिकित्सीय परेशानी ना हो, तो गर्भवती महिला की नॉर्मल डिलीवरी हो सकती है।

नॉर्मल डिलीवरी की संभावना को बढ़ाने वाले कारक

नीचे हम कुछ ऐसे कारकों के बारे में बताने जा रहे हैं, जो नॉर्मल डिलीवरी होने की संभावना को बढ़ा सकते हैं :

अगर गर्भवती महिला को पहले की गर्भावस्था में सामान्य तरह से योनि स्राव हुआ हो।

अगर गर्भवती महिला को किसी तरह की शारीरिक बीमारी (जैसे- अस्थमा आदि) ना हो।

अगर गर्भवती महिला का वज़न सामान्य हो।

अगर गर्भवती महिला गर्भावस्था के दौरान किसी गंभीर स्वास्थ्य संबंधी समस्या से ग्रस्त ना हो।

अगर गर्भवती महिला गर्भावस्था के दौरान शारीरिक रूप से सक्रिय रहे।

अगर गर्भवती महिला का ब्लड प्रेशर, ब्लड शुगर और खून में हिमोग्लोबिन की मात्रा सामान्य हो।

नॉर्मल डिलीवरी के संकेत और लक्षण | Normal Delivery Ke Lakshan

जी हां, कुछ खास संकेतों और लक्षणों के आधार पर नॉर्मल डिलीवरी होने का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। आमतौर पर ये लक्षण गर्भवती महिला के शरीर में प्रसव के चार सप्ताह पहले से नज़र आने लगते हैं। नीचे इन लक्षणों और संकेतों के बारे में विस्तार से बताया गया है :

गर्भावस्था के 30वें सप्ताह से 34वें सप्ताह के बीच अगर भ्रूण का सिर नीचे की ओर आ जाए, तो यह नॉर्मल डिलीवरी की संभावना को बढ़ा देता है।

भ्रूण का सिर गर्भवती महिला की योनि पर दबाव डालता है, जिससे महिला को बार-बार पेशाब लगती है। यह नॉर्मल डिलीवरी का लक्षण हो सकता है।

अगर भ्रूण के नीचे की ओर आने से गर्भवती महिला को हिलने-डुलने में परेशानी महसूस होने लगे, तो ये नॉर्मल डिलीवरी का लक्षण हो सकता है।

डिलीवरी का समय नज़दीक आने पर गर्भवती महिला के गुदाद्वार की मांसपेशियां ढीली पड़ जाती हैं। इस कारण महिला को पतले मल की शिकायत हो सकती है। हालांकि, इसे नॉर्मल डिलीवरी का संकेत भी माना जा सकता है।

नॉर्मल डिलीवरी कैसे होती है? | Normal Delivery Kaise Hoti Hai

नॉर्मल डिलीवरी की प्रक्रिया को कुल तीन चरणों में बांटा गया है। इसके पहले चरण को भी तीन हिस्सों में बांटा गया है, जिनके बारे में नीचे विस्तार से बताया गया है।

नॉर्मल डिलीवरी का पहला चरण :
1. लेटेंट प्रक्रिया :

नॉर्मल डिलीवरी में लेटेंट की प्रक्रिया लंबे समय तक चलती है। इसमें गर्भाशय ग्रीवा 3 सेंटीमीटर तक खुल सकती है। यह प्रक्रिया डिलीवरी के एक सप्ताह पहले या डिलीवरी के कुछ घंटों पहले शुरू हो सकती है। इस दौरान गर्भवती महिला को बीच-बीच में संकुचन भी हो सकते हैं।

लेटेंट प्रक्रिया से गुज़र रही गर्भवती महिलाओं के लिए टिप्स :

आराम करें और अपना पूरा ध्यान रखें।
बीच-बीच में चलती फिरती रहें और खूब पानी पिएं।
अकेली ना रहें, अपने साथ किसी ना किसी को ज़रूर रखें।
अस्पताल जाने के लिए तैयारी शुरू कर दें।

2. एक्टिव प्रक्रिया :

एक्टिव प्रक्रिया में गर्भाशय ग्रीवा 3-7 सेंटीमीटर तक खुल जाती है। इस दौरान संकुचन की वजह से तेज़ दर्द होता है।

एक्टिव प्रक्रिया से गुज़र ही गर्भवती महिलाओं के लिए टिप्स :

अगर संकुचन तेज़ होने लगे, तो खुद को रिलैक्स रखें और सांसों के व्यायाम पर ध्यान दें।
किसी से अपने कंधों की मालिश कराएं। इससे आपको आराम मिलेगा।

3. ट्रांज़िशन प्रक्रिया :

ट्रांज़िशन प्रक्रिया में गर्भाशय ग्रीवा 8-10 सेंटीमीटर तक खुल जाती है। इस दौरान संकुचन लगातार होते रहते हैं और दर्द भी बढ़ जाता है।

ट्रांज़िशन प्रक्रिया से गुज़र रही गर्भवती महिलाओं के लिए टिप्स :

अगर आप घर पर हैं, तो वहां मौजूद व्यक्ति से अस्पताल चलने के लिए कहें।
अगर योनि से द्रव आ रहा है, तो इसकी गंध, रंग, आदि को एक जगह नोट कर लें।
शांत रहें और सांसों के व्यायाम पर ध्यान दें।

नॉर्मल डिलीवरी का दूसरा चरण – बच्चे का बाहर आना

इस दौरान गर्भाशय ग्रीवा पूरी तरह से खुल जाती है और संकुचन की गति तेज़ हो जाती है। इस चरण में शिशु का सिर पूरी तरह से नीचे आ जाता है।

इस समय डॉक्टर गर्भवती महिला से खुद से ज़ोर लगाने के लिए कहते हैं। ऐसा करने पर पहले शिशु का सिर बाहर आता है। इसके बाद डॉक्टर शिशु के बाकी शरीर को बाहर निकाल लेते हैं।

दूसरे चरण से गुज़र रहीं गर्भवती महिलाओं के लिए टिप्स :

संकुचन के दौरान आप बीच-बीच में अपनी पॉज़िशन बदलती रहें।
नियमित रूप से सांस लेती रहें।
बच्चे को पुश करने की कोशिश बराबर करती रहें।

नॉर्मल डिलीवरी का तीसरा चरण – गर्भनाल का बाहर आना

शिशु के बाहर आते ही डॉक्टर गर्भनाल को काट कर अलग कर देते हैं। तीसरे चरण में गर्भवती महिला के गर्भाशय में मौजूद ‘प्लेसेंटा (अपरा)’ बाहर निकलती है। शिशु के जन्म के बाद, प्लेसेंटा भी गर्भाशय की दीवार से अलग होने लगती है। प्लेसेंटा के अलग होने के दौरान भी गर्भवती महिला को हल्के संकुचन होते हैं। ये संकुचन शिशु के जन्म के पांच मिनट बाद शुरू हो सकते हैं। प्लेसेंटा के बाहर आने की प्रक्रिया लगभग आधे घंटे तक चल सकती है। इसके लिए भी डॉक्टर गर्भवती महिला को खुद से ज़ोर लगाने के लिए कहते हैं।

तीसरे चरण से गुज़र ही गर्भवती महिलाओं के लिए टिप्स :

गर्भनाल पूरी तरह से बाहर आ जाए, तो नर्स को इस बारे में बता दें ताकि वो इसे साफ़ कर दे।
इसके बाद नर्स से अपने पेट के निचले हिस्से पर हल्की मालिश करने के लिए कहें।

नॉर्मल डिलीवरी में कितना समय लगता है?

आमतौर पर नॉर्मल डिलीवरी में लगने वाला समय गर्भवती महिला की शारीरिक अवस्था पर निर्भर करता है। अगर गर्भवती महिला की पहली बार नॉर्मल डिलीवरी होने जा रही है, तो इस प्रक्रिया में 7-8 घंटे तक का समय लग सकता है। वहीं, अगर यह गर्भवती महिला की दूसरी डिलीवरी है, तो इस प्रक्रिया में थोड़ा कम समय लग सकता है।

नॉर्मल डिलीवरी की संभावना बढ़ाने के लिए 11 टिप्स | Normal Delivery Ke Upay

नीचे दिए गए इन टिप्स को अपनाकर कोई भी गर्भवती महिला नॉर्मल डिलीवरी होने की संभावना को बढ़ा सकती है :

1. तनाव से दूर रहें :

नॉर्मल डिलीवरी की इच्छा रखने वाली गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान तनाव से दूर रहने की कोशिश करनी चाहिए। इसके लिए वे चाहें तो ध्यान लगा सकती हैं, संगीत सुन सकती हैं या फिर किताबें पढ़ सकती हैं।

2. नकारात्मक बातें ना सोचें :

गर्भावस्था के दौरान नकारात्मक बातों से दूर रहें। डिलीवरी से जुड़ी सुनी-सुनाई नकारात्मक बातों और किस्सों पर बिल्कुल भी ध्यान ना दें। याद रखें कि हर महिला का अनुभव अलग हो सकता है। इसलिए, दूसरों के बुरे अनुभवों की वजह से अपने भीतर डर पैदा ना करें।

3. प्रसव के बारे में सही जानकारी लें :

सही जानकारियाँ डर को दूर करती हैं। इसलिए, प्रसव के बारे में ज़्यादा से ज़्यादा सही जानकारी पाने की कोशिश करें। इससे गर्भवती महिला को प्रसव की प्रक्रिया को अच्छी तरह से समझने में मदद मिलती है।

4. अपनों के साथ रहें :

अपनों का साथ गर्भवती महिला को भावनात्मक रूप में मजबूत बनाता है। इसलिए, गर्भावस्था के दौरान हमेशा अपनों के साथ रहने की कोशिश करें।

5. सही डॉक्टर चुनें :

दुख की बात है कि कुछ डॉक्टर अपने फ़ायदे के लिए बिना किसी ज़रूरत के सिज़ेरियन डिलीवरी करवाने की सलाह दे देते हैं। ऐसे में गर्भवती महिला को डिलीवरी के लिए डॉक्टर का चुनाव काफ़ी सोच-समझकर करना चाहिए। नॉर्मल डिलीवरी के लिए ऐसा डॉक्टर चुनना ज़रूरी है, जो गर्भवती महिला के शरीर की स्थिति के बारे में सही जानकारी देता रहे।

6. मदद के लिए एक अनुभवी दाई रखें :

नॉर्मल डिलीवरी की चाहत रखने वाली महिलाओं को अपने पास अनुभवी दाई को रखने की सलाह दी जाती है। ऐसी दाइयों के पास नॉर्मल डिलीवरी कराने का काफ़ी लंबा अनुभव होता है, इसलिए वे डिलीवरी के दौरान गर्भवती महिलाओं के लिए काफ़ी मददगार साबित हो सकती है। इसके अलावा, दाइयों को शिशु के जन्म के बाद की जाने वाली देखभाल की भी अच्छी जानकारी होती है।

7. शरीर के निचले हिस्से की नियमित रूप से मालिश करें :

गर्भावस्था के सातवें महीने के बाद, गर्भवती महिलाएं अपने शरीर के निचले हिस्से की मालिश शुरू कर सकती हैं। इससे प्रसव में आसानी होती है और तनाव भी दूर होता है।

8. खुद को हाइड्रेट रखें:

गर्भवती महिलाओं को हमेशा खुद को हाइड्रेट रखना चाहिए। उन्हें खूब पानी या जूस पीना चाहिए। इससे नॉर्मल डिलीवरी में आसानी होती है।

9. उठने-बैठने की सही स्थिति का ध्यान रखें :

गर्भवती महिला की उठने-बैठने से लेकर लेटने तक की स्थिति गर्भ में पल रहे शिशु पर असर डालती है। इसलिए, उन्हें हमेशा अपने शरीर को सही स्थिति में रखने की कोशिश करनी चाहिए। जैसे कि बैठते समय उन्हें अपनी पीठ को ठीक से सहारा देकर बैठना चाहिए।

10. वज़न नियंत्रित रखें :

गर्भावस्था में वज़न बढ़ना सामान्य बात है। लेकिन, गर्भवती महिला का वज़न बहुत ज़्यादा भी नहीं बढ़ना चाहिए। बहुत ज़्यादा वज़न होने से प्रसव के समय परेशानी हो सकती है। दरअसल, मां अगर ज़्यादा मोटी हो, तो शिशु को बाहर आने में कठिनाई होती है।

11. व्यायाम करें :

गर्भावस्था में नियमित रूप से व्यायाम करने से नॉर्मल डिलीवरी की संभावना काफ़ी बढ़ जाती है। इसलिए, डॉक्टर की सलाह लेकर नियमित रूप से व्यायाम ज़रूर करें।

Source – momjunction

   
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