लोकसभा चुनाव : तृणमूल और बीजेपी के बीच संघर्ष के पीछे की कहानी

पश्चिम बंगाल में चुनाव आयोग ने प्रचार करने पर रात के 10 बजे के बाद से रोक लगा दी है..यह चुनाव आयोग का एक ऐसा फैसला है जिसको लेकर बहस छिड़ गई है..कई लोग कह रहे हैं कि यदि चुनाव आयोग को प्रचार बंद ही करना था तो 15 तारीख के 10 बजे से ही बंद कर देना चाहिए था. उसे 34 घंटे क्यों बढ़ाया गया. क्या इसलिए कि बंगाल में प्रधानमंत्री को दो रैली होनी थीं. चुनाव आयोग अपने इस फैसले को लेकर विवाद के घेरे में आ गया है और उस पर पक्षपात करने का आरोप लग रहा है.
यह पहला मौका नहीं है जब चुनाव आयोग पर इस तरह से अंगुलियां उठाई जा रही हैं. उसके कामकाज को लेकर देश के प्रमुख बुद्धिजीवी भी सवाल उठा चुके हैं और सुप्रीम कोर्ट भी टिप्पणी कर चुका है. और यह सब हो रहा पश्चिम बंगाल को लेकर क्योंकि यहां बीजेपी और तृणमूल के बीच तकरार काफी बढ़ गया है. तनातनी तो पहले से ही थी मगर अमित शाह के रोड शो ने आग में घी डालने का काम किया क्योंकि उसमें से हिंसा की खबर आई और हालात बेकाबू हो गया.

ये भी पढ़े – 10 ईज़ी वेट लॉस टिप्स

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और प्रधानमंत्री के बीच रिश्ता तनाव से भरा रहा है. सन 2014 में ममता ने मोदी जी को दंगा बाबू कहा था. इस बार प्रधानमंत्री ने बंगाल को ट्रिपल टी का नाम दिया यानि तृणमूल, टोलाबाजी, टैक्स. इस पर जाहिर है ममता बनर्जी आग बबूला हो गईं. ममता ने भी इस बार कोई कसर नहीं छोड़ी. उसने योगी,स्मृति ईरानी और अमित शाह की सभाओं और रोड शो पर रोक लगाई और हेलिकॉप्टर न उतरने देने का आदेश दिया. तकरार बढ़ती ही गई.

दरअसल इस तकरार की कहानी शुरू होती है 2017 में जब बीजेपी ने पूरब देखो यानि पूर्वोत्तर के राज्यों जिसमें असम, त्रिपुरा और पूर्वोत्तर के राज्य शामिल हैं, के लिए रणनीति बनानी शुरू की. इसमें ओडिशा और बंगाल भी शामिल था. इसका नतीजा दिखा 2018 के पंचायत चुनाव में. बीजेपी ने पहली बार बंगाल में पुरुलिया की 1944 ग्राम पंचायतों में से 644 जीतीं. इसी तरह झारग्राम के 806 में से 329 सीटें जीतीं. झारग्राम में तृणमूल ने 79 में 28 ग्राम पंचायत गंवा दीं. झारग्राम वही इलाका है जिसे ममता बनर्जी ने सबसे पहले 2011 में वामदलों से छीना था और तृणमूल कांग्रेस के उदय की शुरुआत हुई थी. इतिहास अब फिर अपने आपको दोहरा रहा था. इस बार और बीजेपी झारग्राम में उभरने लगी थी. पंचायत चुनाव में तृणमूल ने जहां 21,110 पंचायत जीतीं तो दूसरे नंबर पर बीजेपी रही. उसने 5,747 पंचायतों पर कब्जा किया. वहीं वामदलों की झोली में 1,708 और कांग्रेस के पास 1,062 पंचायतें..वामदलों का सफाया होना शुरू हो गया था. सन 2011 में जहां वामदलों के पास करीब 40 फीसदी वोट थे वो 2016 में घटकर 25 फीसदी रह गया था. यही नहीं तृणमूल कांग्रेस के कैडर से बचने के लिए वामदलों के कैडर अब बीजेपी में शामिल होने लगे थे. उनमें तृणमूल से बदला लेने की भावना भी थी. वो ममता को नापसंद करते थे. यही सब अब खुलकर सामने आने लगा है. यही वजह है तृणमूल और बीजेपी के कार्यकर्ताओं के बीच संघर्ष की. कोलकाता इसका केन्द्र बिंदु बना हुआ है. वजह है अंतिम दौर की जिन नौ सीटों पर चुनाव हो रहा है, वे सब इसी के आसपास हैं..सब एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं.

दमदम,बारासात,बासिरहाट,जयनगर,मथुरापुर,डायमंड हार्बर,जाधवपुर,कोलकाता दक्षिण,कोलकाता उत्तर में 19 मई को वोट डाले जाने हैं और अभी इन सभी नौ सीटों पर तृणमूल कांग्रेस का कब्जा है. जिसमें 2014 में उत्तर कोलकाता और दक्षिण कोलकाता में बीजेपी दूसरे नंबर पर थी और इस बार बाकी सात सीटों पर बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला है. यही वजह है कि प्रधानमंत्री कहते हैं कि इस बार की सरकार पश्चिम बंगाल से बनेगी.

बीजेपी को लगता है कि उत्तर प्रदेश,राजस्थान,गुजरात,मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की सीटों की भरपाई पश्चिम बंगाल और ओडिशा से ही होने वाली है. जाहिर है जब दांव पर इतना कुछ लगा हो तो कुछ भी किया जा सकता है और कुछ भी हो सकता है. तो यह है कहानी पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी के बीच संघर्ष की.

Source – NDTV

Share

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *