माता भाग कौर उर्फ़ माई भागो: गुरु गोबिंद सिंह की वो लड़ाका जिसने मुग़लों के दांत खट्टे कर दिए

कर्नाटक के जिनवारा में एक झक सफ़ेद गुरुद्वारा है. बिदार से 11 किलोमीटर दूर. गुरूद्वारे का नाम है गुरुद्वारा तप स्थान माई भागो. यहां इससे पहले एक घर हुआ करता था. वहां एक कमरा और उसके बाहर दालान था. अब भव्य गुरुद्वारा है. सैकड़ों साल पहले उसी कमरे में बैठ कर माताजी भाग कौर ध्यान लगाया करती थीं. उन्हीं की याद को सुरक्षित रखने, और उसकी पवित्रता बनाये रखने के लिए आज वहां ये गुरुद्वारा खड़ा है. लेकिन थीं कौन ये माताजी भाग कौर?

ये थीं माई भागो. गुरु गोबिंद सिंह की विश्वस्त योद्धा. मुक्तसर की लड़ाई में जिंदा बचने वाली इकलौती लड़ाका. चाली मुक्ते की नेता.

एक गुरुद्वारा और है. झाबल कलां में. इसका नाम है गुरुद्वारा जनम स्थान माई भागो. यहीं जन्म हुआ था माई भागो का. भाई मल्लो शाह के घर. ये इलाका आज तरन तारन में पड़ता है. माई भागो ने अपने पिता की तरह शस्त्र विद्या में शिक्षा पाई. उनके पिता मल्लो शाह गुरु हरगोबिन्द सिंह की सेना में शामिल थे. निधान सिंह वराइच से इनकी शादी हुई.

जब वो बहुत छोटी थीं, तो उनके माता पिता उन्हें गुरु गोबिंद सिंह के दर्शन के लिए ले गए थे. उन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि चंद ही सालों बाद वो गुरु गोबिंद सिंह के जीवन में बहुत बड़ी भूमिका निभाने वाली हैं.

बात है 1704 दिसम्बर की. मुगल कोशिश में लगे हुए थे कि किसी तरह गुरु गोबिंद सिंह को पकड़ लिया जाए. वजीर खान के नेतृत्व में मुग़ल सेना निकली, और लाहौर के साथ कश्मीर से भी सैनिक बुलाए गए. आस पास के छुटपुट राजाओं ने भी उनका साथ दिया. आनंदपुर साहिब में मौजूद थे गुरु गोबिंद सिंह. आनंदपुर फोर्ट को घेर लिया गया. धमकी दी गई कि उसे घेर कर खाने-पीने की सप्लाई काट दी जाएगी. गुरु गोबिंद सिंह बाहर नहीं आए. ये तजवीज की गई कि जो भी सिख ये कह दे कि वो गुरु गोबिंद सिंह का सिख नहीं है, उसे छोड़ दिया जाएगा. तकरीबन चालीस सिखों ने गुरु गोबिंद सिंह को कहा कि अब वो उनके सिख नहीं हैं. इनके लीडर थे महान सिंह बरार. गुरु गोबिंद सिंह ने कहा, एक कागज़ लो, उस पर लिखो ‘हम अब आपके सिख नहीं हैं’. चालीसों ने उस पर अपना नाम लिखा. और दे दिया. और वहां से निकल गए.

माई भागो को पता चला कि चालीस सिख गुरु गोबिंद सिंह को छोड़ कर चले गए हैं. ये बात उन्हें चुभ गई. उन्होंने कमर कसी, और निकल पड़ीं. उन सिखों को खरी खोटी सुनाई. उनके शौर्य की याद दिलाई. गुरु गोबिंद सिंह को इस हालत में छोड़ कर जिस तरह वो वापस लौट आए थे, उसपर उनकी लानत मलामत की. माई भागो के ये शब्द सुन कर उनकी आंखें खुल गईं. वो अपने किए पे शर्मिंदा हो गए. उनको और कुछ और सिखों को साथ लेकर माई भागो मालवा की तरफ निकल गईं, जहां गुरु थे.

इस बीच औरंगजेब ने कुरआन पर शपथ लिखकर भेजी. उस पर सभी नेताओं के साइन कराए. शपथ में लिखा था कि गुरु गोबिंद सिंह बाहर आ जाएं तो इज्जत के साथ शान्ति की बात की जाएगी.

गुरु गोबिंद सिंह को उनपर भरोसा नहीं था. फिर भी वो बाहर निकले. मुगलों ने पीछा करना शुरू किया. चमकौर साहिब में गुरु गोबिंद सिंह और उनके साथ के सिख रुके. गुरु गोबिंद सिंह के दो छोटे बेटे अपनी दादी माता गुजरी (माता गुजर कौर) के साथ निकल चुके थे. नाम थे जोरावर सिंह और फ़तेह सिंह. गुरु के दोनों बड़े बेटे उनके साथ ही थे. चमकौर में गुरु के रुकने की खबर सुनकर उन पर मुगलों ने हमला कर दिया. इसमें पंज प्यारों ने जोर डाल कर कहा कि गुरु वहां से निकल जाएं. इस लड़ाई में गुरु के दोनों बड़े बेटे अजीत सिंह और जुझार सिंह खेत रहे.

यहां से गुरु गोबिंद सिंह निकले, तो किदराना पहुंचे. यहीं हुई मुक्तसर की लड़ाई. लेकिन इस लड़ाई में कुछ अलग था. जब तक गुरु वहां पहुंचते, अपने चालीस सिखों के साथ वहां पहुंच चुकी थीं सिख इतिहास की पहली महिला योद्धा. उनके तलवार के पहले झटके से पहले ही इतिहास अपने-आप को लिख चुका था. अब केवल उस लड़ाई को निहार रहा था.

जिस लड़ाई में सेनापति थीं माई भागो.

गुरु गोबिंद सिंह के पीछे आती दस हजारी मुग़ल सेना को वहीं तालाब के पास रोक लिया. वो उस पूरे इलाके का इकलौता पानी का स्रोत था. उस तक पहुंचने से माई भागो और उनके साथ के सिखों ने मुग़ल सेना को रोक दिया. उन्हें पता था कि वो सूखा पड़ा है. लेकिन मुगलों को ये बात पता नहीं थी. वहीं दूर एक ऊंची चट्टान से गुरु गोबिंद सिंह और उनके साथ के सिख तीर बरसा रहे थे. मुगलों की सेना को किसी तरह पीछे हटाया, लेकिन माई भागो के साथ के सभी सिख खेत रहे. कहा जाता है कि महान सिंह बरार ने गुरु गोबिंद सिंह की गोद में आखिरी सांस ली. इन चालीस सिखों को ही चाली मुक्ते (चालीस आज़ाद सिख) की पदवी से नवाज़ा गुरु गोबिंद सिंह ने.

इस लड़ाई के बाद माई भागो निहंग वेश में गुरु गोबिंद सिंह की अंगरक्षक बन गईं. उनके साथ ही रहीं. उनके साथ नांदेड़ गईं. जब 1708 में गुरु गोबिंद सिंह गुज़र गए. तब जिनवारा में जाकर उन्होंने अपनी रही सही जिंदगी गुजारी. जहां रहीं, ध्यान लगाया, आज वहां उनकी याद में गुरुद्वारा है. जहां लोग आते और माई भागो के बलिदान को याद करते हैं.

Source – Odd Nari

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