एपिलेप्सी: वो बीमारी जिसका नाम लेकर लड़कियों की शादी के रिश्ते तोड़ दिए जाते थे

छोटे शहरों में खबर आग की तरह फैलती है. अफवाह हो तो स्पीड डबल समझ लीजिए. अफवाह अगर लड़की के बारे में हो, तब तो क्या ही कहा जाए. हमारा छोटा सा शहर था. लगभग हर कोई एक दूसरे को जानता था. इसलिए वहां अगर खबरों को फैलाना हो, तो बस एक कान में फूंकने की देर होती थी. वो सौ मुंहों से एक साथ बाहर आ जाएगी.

ऐसे में ही एक दिन सुना गया कि गुप्ता जी की लड़की को देखने लड़के वाले आ रहे हैं. गुप्ता जी का बड़ा नाम था शहर में. दुकानें वगैरह थीं. बेटी पढ़ी-लिखी. बड़ी स्वीट सी. लेकिन पता लगा कि लड़के वाले ऐसे ही लौट गए. शादी के लिए मना कर दिया. अब ये बात आज के टाइम में अजीब लगती है कि इस तरह की छोटी सी बात को कोई नोटिस भी क्यों ही करेगा. लेकिन ये बात तब की है जब इन्टरनेट नहीं था. बकौल प्रेमचंद, ‘ नई सभ्यता अभी पहाड़ों की छोटी तक ही पहुंच पाई थी’ टाइप कुछ समझ लें. बड़ी बात थी.

उसी के साथ अफवाह उड़ी. कि गुप्ता जी की लड़की को मिर्गी के दौरे आते हैं. इसलिए लडके वाले मना कर गए. जैसा पहले कहा, अफवाह, छोटा शहर, जंगल की आग. साल भर तक कोशिश चली, गुप्ता जी की बेटी की शादी नहीं हुई. वो लोग फिर वहां से शिफ्ट हो गए. हैदराबाद गए या मुंबई, याद नहीं. बस चले गए. अफवाह वहीं रही. उनके जाने के बाद भी कई लड़कियों के बारे में ये अफवाह उड़ी. ख़ास बात तो ये थी कि ये सभी बातें तभी उड़ती थीं जब उन लड़कियों की शादी के रिश्तों की बात चलती थी. उनके रिश्ते टूट जाते थे, तो ये अफवाहें फिर शांत हो जाती थीं. आम तौर पर ये सभी अफवाहें कुछ ख़ास लोगों से शुरू होती थीं. फिर वहां से फ़ैल जाती थीं. ऐसे लोगों को पश्चिम बिहार में ‘रिश्ताकटवा’ कहा जाता है. किसी का रिश्ता होता देख उसे काट देते हैं. किसी भी बहाने से. लड़के का रिश्ता हो तो कह देने लड़का पियक्कड़ है, जुआ खेलता है. इस तरह की बातें. लड़की हो तो कह दो मिर्गी आती है. या कैरेक्टर खराब है.

मिर्गी के दौरे के नाम पर पता नहीं कितनों की ज़िन्दगी बर्बाद की गई. न जाने कितने लोग ट्रॉमा में चले गए. बड़े शहरों में अब जानकारी बढ़ गई है. छोटे शहरों में शायद अभी भी ऐसा कुछ होता हो, गांवों में होता हो. इनकार नहीं किया जा सकता.

आज वर्ल्ड पर्पल डे है. मिर्गी यानी एपिलेप्सी को लेकर जागरूकता बढ़ाने के लिए तय किया गया दिन.

होती क्या है मिर्गी? क्या दौरे आते हैं?

सीधे सीधे शब्दों में समझ लीजिए कि दिमाग में जब इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी में कुछ ऊंच नीच होती है, तो करंट बेकाबू होकर दौड़ता है. शरीर के अलग अलग हिस्सों को प्रभावित करता है. इसके कुछ लक्षण हो सकते हैं:

होश-हवास खो बैठना
हाथ पैरों में झटके पड़ना
कन्फ्यूजन
तेज़ डर, घबराहट जैसा अहसास होना
एकटक घूरना

हमने बात की डॉक्टर अनूप कोहली से. दिल्ली में प्रैक्टिस करते हैं. न्यूरॉलजिस्ट हैं. उन्होंने हमें बताया एपिलेप्सी के बारे में. उन्होंने बताया,

‘ये दो से तीन फीसद पॉपुलेशन में पाया जाता है. दो तरह के सीज़र (seizure याने दौरे) पड़ते हैं. फोकल और जेनेरल. फोकल ही बढ़कर जेनेरल सीज़र हो जाता है. रिफ्रैक्ट्री सीज़र में एपिलेप्सी सर्जरी की ज़रूरत होती है. बच्चों को तेज बुखार हो तो उनको भी दौरे पड़ सकते हैं. अब तो नई-नई दवाइयां आ रही हैं. इसके ऊपर लगे टैबू को हटना चाहिए. कुछ लड़कियों के पेरेंट्स घबराए हुए आते हैं उनको भी यही समझाता हूं कि अगर लड़की को ये प्रॉब्लम है तो उसे उसकी जिंदगी जीने दीजिए. पढ़ाइए, लिखाइए, नौकरी करने भेजिए. ऐसा कोई प्रोग्राम चलाना चाहिए जिससे एपिलेप्टिक पेशेंट्स, स्पेशलिस्ट्स इस पर बैठ कर बातचीत करें. इससे डील करने का रास्ता सजेस्ट करें.’

मिर्गी की बीमारी जेनेटिक भी होती है. यानि परिवार में किसी को हो तो चांसेज बढ़ जाते हैं कि आपको भी ये बीमारी होगी. लेकिन चिंता की कोई बात नहीं. दवाइयों से इसे कंट्रोल किया जा सकता है. एक नॉर्मल ज़िन्दगी जी जा सकती है. बस इसे टैबू मानकर अपनी लाइफ कंट्रोल मत करने दीजिए. एपिलेप्सी एक ऐसी बीमारी है जो पुरुषों और स्त्रियों दोनों को होती है. लेकिन जब बात महिलाओं की आती है तो इसे एक टैबू की तरह ट्रीट किया जाता है. बीमारी छुपाई जाती है. ये खतरनाक है. इससे डील करना ज़रूरी है.

Source – Odd Nari

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