वैसे तो बजट बनाना कोई आसान काम नहीं है, सरकारी बजट को बनाने महीनों लग जाते हैं. लेकिन घर का बजट बनाना हो तो महिलाएं बाजी मार ले जाती हैं. पुरुषों के मुकाबले महिलाएं घर का बजट बेहतर तरीके से बनाती हैं और उसे लागू भी करती हैं.
सरल शब्दों में परिभाषित करें तो आमदनी और खर्च के ब्योरों का एक अनुमान बजट कहलाता है. लेकिन घर के खर्च का सटीक अनुमान लगाने में महिलाओं को महारथ हासिल हैं.
घर चलाने में पढ़ी-लिखी शहरी महिलाओं के मुकाबले गांव की महिलाएं भी पीछे नहीं हैं. चाहे महीनेभर का खर्च 2 हजार रुपये में चलाना हो, या फिर 50 हजार रुपये में, महिलाएं उस हिसाब से लेखा-जोखा तैयार कर लेती हैं. महिलाएं हमेशा फॉर्मूले के तहत घर चलाती हैं.
पहला फॉर्मूला: महिलाएं महीने भर के खर्च को सटीक तरीके से आंकलन कर लेती हैं, और फिर पिछले महीने के मुकाबले उन खर्चों को बचाने की कोशिश करती हैं जिस पर घर चलाने वाले पुरुषों का ध्यान बहुत कम जाता है.
दूसरा फॉर्मूला: महिलाएं महीने के पहले दिन से बचत को ध्यान में रखकर खर्च करती हैं, जैसे महंगी सब्जियों की खरीदारी, बाहर खाना और बच्चों के पॉकेटमनी को पर हमेशा कटौती के फॉर्मूले को अपनाती हैं.
तीसरा फॉर्मूला: जब महिला को महीनेभर के खर्च के लिए बजट एक बार मिल जाती है तो फिर वो एक खाका तैयार कर लेती हैं. जिसमें दूध, राशन, सब्जी, बच्चों के स्कूल-ट्यूशन फीस, दवाई और फिर एक ऐसा फंड तैयार रखती हैं जिसे अचानक खर्च करना पड़े. इस आंकलन के आधार पर ही अधिकांश महिलाएं घर बेहतर तरीके से चलाती हैं और उनका बजट कभी नहीं बिगड़ता है.
Source – Aaj Tak
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