मैं आज तक कभी कार की ड्राइविंग सीट पर नहीं बैठा पर मेरे पास कार का ड्राइविंग लाइसेंस है। इसके लिए मुझे ज़्यादा मशक्कत भी नहीं करनी पड़ी थी। यह लगभग उतना ही आसान है जितना पिज़्ज़ा मंगवाना, पैसों के अलावा किसी और चीज़ की ज़रूरत नहीं होती है।

अब आप सोचते होंगे इसमें क्या है, यह तो हमारी व्यवस्था का नमूना भर है। क्या आप जानते हैं इसके परिणाम कितने घातक हैं? इसका अंदाज़ा इस बात भर से लगा लीजिये कि भारत के आज तक युद्धों में जितने सैनिक शहीद नहीं हुए उससे ज़्यादा लोग सड़कों पर दुर्घटना में एक साल में मारे जाते हैं।

सेव लाइफ फाउंडेशन के आंकड़ों के अनुसार सड़क दुर्घटना में पिछले 10 सालों में 13लाख, 81 हज़ार, 314 लोगों की मौत और 50 लाख, 30 हज़ार, 707 लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं। हर 3.5 मिनट में एक व्यक्ति की मौत सड़क दुर्घटना में हो जाती है यानी आप यह लेख पढ़ चुके होंगे शायद तब तक 1 व्यक्ति इस देश में सड़क दुर्घटना में अपनी जान दे चुका होगा।

गलती सिर्फ फर्ज़ी लाइसेंस बनाने वालों की ही नहीं है, वह तो बस शुरुआत मात्र करते हैं। भारत की सड़कों को दुनिया की सबसे खतरनाक सड़कें बनाने में हम 133.92 करोड़ भारतीयों का पूरा योगदान है। आपका लापरवाही से गाड़ी चलाना, हेलमेट और सीट बेल्ट का इस्तेमाल ना करना भी बड़ा कारक है।

हम भारतीयों का ट्रैफिक सेन्स तो विश्व प्रसिद्ध है, इसलिए प्रशासन हर चौराहे पर आपके ऊपर नज़र रखने के लिए पुलिसकर्मी तैनात करता है। तो क्या? हमारे देश का भ्रष्टाचार भी तो विश्व प्रसिद्ध ही है, कोई पकड़ भी लेगा तो या तो एक दो फोन घुमाकर छोड़ दिए जाएंगे या फिर 100-50₹ देकर छूट जाएंगे।

इन सभी कारकों का जब संगम होता है तब जाकर कहीं होती है दुर्घटना लेकिन फिर भी कई लोगों की जान बचने की संभावना रहती है। तो वो रही सही कसर हमारी आपातकालीन स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी कर देती है, क्योंकि लगभग 50% लोगों की मौत स्वास्थ्य व्यवस्था के समय पर ना मिलने के कारण हो जाती है और एम्बुलेंस को लेट करने में हमारा ही ट्रैफिक भरपूर योगदान देता है। इस तरह से हम यह मौत का भयावह आंकड़ां प्राप्त करने में सफल होते हैं।

इसके क्या हैं समाधान
भारत में सड़क दुर्घटनाओं के बड़े आंकड़ों के पीछे वजह भी बहुत ज़्यादा है और इसे कम करने की नागरिकों और सरकार दोनों की ज़िम्मेदारी बनती है।

1. सबसे पहले तो सरकार को लाइसेंस बनाने की जो लचर व्यवस्था है उसमें बदलाव लाना होगा। हर व्यक्ति के आधार कार्ड में उसके बॉयोमेट्रिक होते हैं, जिसका इस्तेमाल लाइसेंस बनाने के दौरान लिए जाने वाले ऑनलाइन टेस्ट और ड्राइविंग टेस्ट में करना चाहिए। यानी कि जब तक कोई व्यक्ति खुद आकर बॉयोमेट्रिक पहचान नहीं बताएगा तब तक उसका लाइसेंस नहीं बनना चाहिए।

2. चालान की राशी बढ़ा देनी चाहिए ताकि लोग चालान के डर से ही सही हेलमेट और सीट बेल्ट का इस्तेमाल करें। सबसे ज़्यादा दुर्घटनाएं बाइक सवार लोगों की होती है, जिसका मुख्य कारण होता है हेलमेट नहीं पहनना। अगर ट्रैफिक पुलिस चालान काटने की बजाय नियम का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को हेलमेट दे और उसके बदले पैसे ले तो लोग वैसे ही हेलमेट पहनाना शुरू कर देंगे।

3. सरकारी सेक्टर में काम करने वाले लोगों के लिए हेलमेट अनिवार्य बना देना चाहिए और ऐसा पोर्टल विकसित करना चाहिए, जहां अगर कोई उनकी बिना हेलमेट के फोटो पोस्ट कर दे तो उनपर चालान कट सके।

4. चालान की सुविधा ऑनलाइन होनी चाहिए और अगर किसी व्यक्ति का एक सीमा से ज़्यादा बार चालान बनता है तो उसका लाइसेंस निरस्त होना चाहिए।

5. सड़कों की डिज़ाइन या इंजीनिरिंग से सम्बंधित कोई कमी होने पर ठेकेदार पर कड़ी कार्यवाही की जाये।

6. सड़कों के किनारे फुटपाथ और दोपहिया (साइकिल,मोटरसाइकिल) चालकों के लिए अलग से लेन अनिवार्य होने चाहिए ताकि वो सुरक्षित यात्रा कर सकें।

6. ज़िला स्तर पर शहर से बाहर एक आपातकालीन हॉस्पिटल बनाया जाये, जहां पर सड़क दुर्घटना के घायलों का तुरंत इलाज हो सके।

7. राष्ट्रीय राजमार्गों और राज्य राजमार्गों पर शराब की दुकानों पर पूर्णतया प्रतिबन्ध लगाया जाये।

8. राष्ट्रीय राजमार्गों और राज्य राजमार्गों पर जो ढाबे या होटल हैं, उन्हें अपने यहां एक एम्बुलेंस रखने के लिए प्रतिबद्ध किया जाए। ऐसा तंत्र विकसित किया जाये कि हर 15-20 किमी के दायरे में एक एम्बुलेंस हो। फिर उनका एक यूनिक नंबर जारी किया जाये जिसपर फोन करने पर सबसे नज़दीकी एम्बुलेंस उपलब्ध होगी। इस माध्यम से ज़्यादा-से-ज़्यादा 15 मिनट में घायल को एम्बुलेंस की सहायता मिल जायेगी।

9. अगर एक ऐप बनाया जाये जैसे ओला या ऊबर पर सीधे नज़दीकी कैब बुक होती है और ड्राईवर की सारी डिटेल हमें मिलती है वेसै ही सबसे नज़दीकी एम्बुलेंस सीधे बुक होगी और उसके ड्राईवर के नंबर हमें प्राप्त हो जाये।

10. ओवरस्पीडिंग करने वालो और ड्रिंक और ड्राइव करने वाले चालकों का चालान बढ़ा दिया जाये और ऑनलाइन तंत्र विकसित किया जाये ताकि ज़्यादा बार ऐसा होने पर उनका लाइसेंस निरस्त कर दिया जाये।

11. प्रशासन को पेशेवर चालकों को साल में कम-से-कम एक सेमीनार में उपस्थित होने के लिए प्रतिबद्ध किया जाये जिस सेमिनार में उन्हें रोड सेफ्टी से जुड़ी जानकारी दी जाये।

इसके अलावा हम विद्यालयों में जाकर, कॉलेज में जाकर जनता के बीच इन आंकड़ों को पेश करें ताकि वो इस समस्या की गंभीरता को समझें। अगर 133.92 करोड़ लोगों का यह देश सड़कों की दशा बिगाड़ सकता है, वहीं 133.92 करोड़ लोग मिलकर इन्हीं सड़कों को दुनिया की सबसे सुरक्षित सड़कें भी बना सकते हैं। उसके लिए ज़रूरत है तो बस लोगों में जागरूकता पैदा करने की, प्रशासन और नागरिकों के बीच सामंजस्य बैठाने की।

Source- Youth Ki Awaaz

   
Railway Employee (App) Rail News Center ( App) Railway Question Bank ( App) Cover art  

Railway Mutual Transfer (App)

Information Center  ( App)
 
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