कम न होने दें कैल्शियम

भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा हाल ही में किए गए एक सर्वेक्षण के मुताबिक 23 प्रतिशत भारतीय स्त्रियों के खानपान में कैल्शियम की कमी पाई गई। इतना ही नहीं 42 प्रतिशत टीनएजर लडकियों के रोजाना के भोजन में कैल्शियम युक्त चीजों का अभाव था। इसी सर्वेक्षण के अनुसार एनीमिया के बाद कैल्शियम की कमी भारतीय स्त्रियों की सबसे बडी स्वास्थ्य समस्या है। इसकी वजह से उन्हें ऑस्टियोपोरोसिस और आथ्र्राइटिस जैसी स्वास्थ्य समस्याएं परेशान करने लगती हैं।

क्यों होता है ऐसा

शिशु को जन्म देने और उसे फीड कराने की वजह से स्त्रियों को कैल्शियम की ज्यादा जरूरत होती है। इसके अलावा पीरियड्स के दौरान प्रतिमाह स्त्री के शरीर से कुछ मात्रा में कैल्शियम बाहर निकल जाता है, लेकिन सबसे बडी विडंबना यह है कि जहां
स्त्रियों को ज्यादा कैल्शियम की जरूरत होती है वहीं रोजाना के भोजन से उन्हें पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम नहीं मिल पाता। इसके लिए सामाजिक और आर्थिक कारण सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं। गरीबी तो कुपोषण की एक बडी वजह है ही। इसके अलावा हमारा सामाजिक ढांचा ऐसा है कि स्त्री चाहे कितनी ही शिक्षित और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर क्यों न हो, लेकिन आज भी वह सदियों पुरानी रूढिवादी मन:स्थिति से बाहर नहीं निकल पाई है। वह परिवार के सभी सदस्यों के खानपान और सेहत का तो ख्ायाल रखती है, पर अपने ऊपर ध्यान नहीं दे पाती। भारतीय परिवारों में मिल्क प्रोडक्ट्स को आज भी ख्ास दर्जा दिया जाता है। इसलिए पुरुषों और बच्चों को खिलाने के बाद अगर ये चीजें बचती हैं तभी स्त्रियां इनका सेवन कर पाती हैं। गांव और छोटे शहरों की स्त्रियां जहां जागरूकता की कमी की वजह से अपने रोजाना के भोजन में पौष्टिक चीजें शामिल नहीं कर पातीं, वहीं महानगरों में रहने वाली कामकाजी स्त्रियां अति व्यस्त जीवनशैली की वजह से अपने खानपान पर ध्यान नहीं दे पातीं। लडकियों के खानपान पर बचपन से विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है, ताकि भविष्य में वे स्वस्थ और सक्रिय रह सकें, पर आजकल ज्यादातर टीनएजर लडकियां छरहरी काया की चाहत में दूध और उससे बनी चीजों का सेवन नहीं करतीं। इस वजह से उनके शरीर में स्थायी रूप से कैल्शियम की कमी हो जाती है और भविष्य में उसकी भरपाई बहुत मुश्किल होती है। इतना ही नहीं एस्थमा के लिए दी जाने वाली स्टीरॉयड दवाओं के साइड इफेक्ट की वजह से भी शरीर में कैल्शियम की कमी हो जाती है। कई बार आनुवंशिक कारणों से भी स्त्रियों के शरीर में कैल्शियम की कमी होती है। अगर इस समस्या की फेमिली हिस्ट्री रही हो तो स्त्रियों को अपने खानपान पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
क्यों •ारूरी है कैल्शियम
किसी भी दूसरे विटमिन या मिनरल की तुलना में हमारे शरीर को कैल्शियम की जरूरत अधिक मात्रा में होती है। हमारी हड्डियां, दांत और नाख्ाून 99 प्रतिशत कैल्शियम से ही बने होते हैं। शेष 1 प्रतिशत कैल्शियम भी हमारे शरीर के लिए बहुत उपयोगी होता है। यह रक्त में पाया जाता है और प्रत्येक कोशिका के बीच एक्स्ट्रा सेल्यूलर फ्लूइड में भी मौजूद होता है। दिल की धडकन, हॉर्मोनल सिस्टम, मांसपेशियों के संचालन, मस्तिष्क की कार्यप्रणाली और ख्ाून के थक्के जमाने के लिए भी शरीर को कैल्शियम की जरूरत होती है। नर्वस सिस्टम को सही ढंग से चलाने और एंजाइम्स को सक्रिय बनाने में भी कैल्शियम अहम भूमिका निभाता है।
अनूठा है बॉडी का सिस्टम
जन्म से लेकर 35 वर्ष की आयु तक हम जितना भी कैल्शियम ग्रहण करते हैं, वह शरीर में एकत्र होकर हमारे लिए बोन बैंक का काम करता है और यही बोन बैंक हमारे शरीर के लिए ताउम्र कैल्शियम की आपूर्ति करता है। लगभग 35 उम्र के बाद चाहे हम कितनी ही अधिक मात्रा में कैल्शियम का सेवन क्यों न करें, पर इसके बाद शरीर में कैल्शियम का स्तर बढा पाना मुश्किल हो जाता है। तभी तो कहा जाता है कि बचपन का खाया-पीया ही बुढापे में काम आता है। हमारे शरीर का अपना मेकैनिज्म कुछ ऐसा है कि अगर हम भोजन के जरिये समुचित मात्रा में कैल्शियम नहीं लेते तो यह ख्ाुद अपने लिए कैल्शियम बना लेता है। दरअसल हमारे थॉयरायड ग्लैंड के ठीक नीचे मटर के दाने जैसे आकार का एक छोटा सा ग्लैंड होता है, जिसे पैराथॉयरायड ग्लैंड कहा जाता है, जब हमारे रक्त में कैल्शियम की मात्रा कम होती है तो यह हड्डियों से कैल्शियम निकाल कर रक्त के लिए उसकी जरूरत पूरी कर देता है, पर इससे हमारे शरीर में पोटैशियम और इलेक्ट्रोलाइट का संतुलन बिगड जाता है। इससे हार्ट पर भी बुरा असर पडता है। इसके अलावा जब हमारे रक्त और कोशिकाओं को कैल्शियम की ख्ाुराक नहीं मिल पाती तो इसे पूरी करने के लिए हड्डियों से कैल्शियम का रिसाव शुरू हो जाता है। इसी वजह से ऑस्टियोपोरोसिस की समस्या होती है।
कैसे पहचानें कमी के लक्षण
आमतौर पर स्त्रियां अपने शरीर में कैल्शियम की कमी को पहचान नहीं पातीं। अगर आप सचेत ढंग से इसके लक्षणों को पहचानें तो यह समस्या आसानी से हल हो सकती है : 
-रात को पैरों की मांसपेशियों में दर्द
– रूखी त्वचा, नाख्ाूनों में दरार और दांतों में पीलापन
– पीएमएस के लक्षणों (पीरियड की शुरुआत से पहले दर्द और चक्कर आना) में अचानकबदलाव
– मामूली सी चोट पर फ्रैक्चर होना
कैसे मिले कैल्शियम
दूध और इससे बनी चीजें कैल्शियम का सबसे अच्छा स्रोत मानी जाती हैं। इसके अलावा सभी हरी पत्तेदार सब्जियों, दालों , सोयाबीन, ओट्स, कॉर्न फ्लेक्स जैसे सीरियल्स ब्राउन राइस, चोकर युक्त आटा और रागी (मडुआ) में भी पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम पाया जाता है। अंडा, मछली और सी फूड से भी शरीर को अच्छी मात्रा में कैल्शियम मिल जाता है, पर कैल्शियम का सबसे ज्यादा फायदा हमें दूध से मिलता है क्योंकि इसमें कई ऐसे तत्व पाए जाते हैं, जिससे हमारी आंतों में कैल्शियम अच्छी तरह जज्ब हो जाता है। अगर किसी को मिल्क प्रोडक्ट्स से एलर्जी हो तो उसे सोया मिल्क, टोफू और सोयाबीन का सेवन करना चाहिए।
ये दोस्ती हम नहीं तोडेंगे
जब बात कैल्शियम की चल रही हो तो हम उसके जिगरी दोस्त विटमिन डी को कैसे भूल सकते हैं भला? यह उसका ऐसा प्यारा और सच्चा दोस्त है कि कैल्शियम हमेशा उसके साथ रहना चाहता है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि हमारे शरीर को भी इनकी यह दोस्ती इतनी पसंद है कि वह अकेले कैल्शियम को रिजेक्ट कर देता है। जब विटमिन डी का साथ हो तभी हमारे शरीर को कैल्शियम का फायदा मिल पाता है। विटमिन डी हमारी हड्डियों में कैल्शियम के अवशोषण की क्षमता बढता है। सूरज की रौशनी को विटमिन डी का सबसे अच्छा स्रोत माना जाता है। इसलिए रोजाना सुबह की धूप में कम से कम पंद्रह-बीस मिनट बिताने की कोशिश करनी चाहिए। अगर व्यस्तता की वजह से ऐसा संभव न हो तो जब भी आप कैल्शियम सप्लीमेंट लें तो उसके साथ विटमिन डी का भी सेवन जरूर करें। वैसे, सभी मिल्क प्रोडक्ट्स, मछली, अंडा, चिकन, मटन, मशरूम, सोयाबीन और मेवों में पर्याप्त मात्रा में विटमिन डी पाया जाता है।
•ारूरत •िांदगी भर की
अगर बचपन से ही लडकियों के खानपान पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाए तो आगे चलकर उनकी हड्डियां और मांसपेशियां मजबूत होंगी। युवावस्था में पारिवारिक जीवन की शुरुआत से पहले भी उन्हें अपने खानपान में कैल्शियम युक्त चीजें शामिल करनी चाहिए। इसके अलावा प्रेग्नेंसी के दौरान और उसके बाद भी स्त्रियों को अपने भोजन में ज्यादा से ज्यादा कैल्शियम युक्त चीजें शामिल करनी चाहिए, ताकि गर्भ में शिशु का सही ढंग से विकास हो। शिशु को फीड देने वाली स्त्रियों के शरीर से प्रतिदिन लगभग 280 मिग्रा. कैल्शियम बाहर निकल जाता है। इस वजह से कई बार उन्हें कमजोरी महसूस होने लगती है। इससे बचने के लिए स्त्रियों को भरपूर मात्रा में कैल्शियम युक्त चीजों का सेवन करना चाहिए। मेनोपॉज का दौर भी स्त्रियों के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है। जब तक उन्हें मनोपॉज नहीं होता तब तक उनकी हड्डियों को ऐस्ट्रोजेन हॉर्मोन का संरक्षण मिल रहा होता है, जो उन्हें जोडों और हड्डियों के दर्द जैसी समस्याओं से बचाता है, लेकिन पीरियड खत्म होते ही उनके शरीर में इस हार्मोन की मात्रा कम हो जाती है। इसी वजह से मेनोपाज के बाद स्त्रियों की हड्डियों पर से एस्ट्रोजेन का सुरक्षा कवच हट जाता है। इस वजह से उसकी हड्डियों से कैल्शियम बाहर निकलना शुरू हो जाता है। इस समस्या से बचने के लिए मनोपज की उम्र में पहुंचने के बाद स्त्रियों को बोनडेंसिटी टेस्ट जरूर करवाना चाहिए। इससे उनके शरीर में कैशिल्यम के स्तर का अंदाजा हो जाता है। अगर रिपोर्ट ठीक हो तो भी इस उम्र में खानपान और एक्सरसाइज पर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए। क्योंकि शारीरिक गतिविधियां कम होने की वजह से भी हड्डियों में कैल्शियम के अवशोषण की क्षमता कम हो जाती है। हमेशा तनावमुक्त रहने की कोशिश करें क्योंकि तनाव की वजह से शरीर में मौजूद कैल्शियम यूरिन के जरिये तेजी से बाहर निकलने लगता है।
नुकसानदेह है ओवरडो•ा
कैल्शियम हमारे शरीर के लिए बेहद जरूरी है, लेकिन इसका ओवरडोज हमारी सेहत के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है। अगर शरीर में इसकी मात्रा बढ जाए तो हड्डियां ज्यादा सख्त होकर अकड जाती हैं और इससे भी हाथ-पैरों में दर्द होने लगता है। इसके अलावा जब शरीर को जरूरत से ज्यादा कैल्शियम मिलता है तो वह किडनी में जाकर वहां स्टोन के रूप में जमा होने लगता है। हालांकि, ऐसा होने की आशंका बहुत कम होती है क्योंकि हमारे शरीर का अपना मेकैनिज्म इतना दुरुस्त है कि अगर हम ज्यादा कैल्शियम ग्रहण करते हैं तो शरीर उसका जरूरत भर ही इस्तेमाल करता है। अतिरिक्त कैल्शियम यूरिन के साथ बाहर निकल जाता है। फिर भी इसके साइड इफेक्ट से बचने के लिए ज्यादा से ज्यादा पानी पीएं, कैल्शियम की जरूरत खानपान से ही पूरी करने की कोशिश करें, डॉक्टर की सलाह के बिना कैल्शियम सप्लीमेंट का सेवन न करें। बुजुर्गो के लिए कैल्शियम को पचा पाना मुश्किल होता है। इसके सेवन से उन्हें कब्ज और गैस की समस्या होती है। ऐसे में डॉक्टर को अपनी परेशानी जरूर बताएं ताकि कैल्शियम सप्लीमेंट के साथ आपको दूसरी जरूरी दवा भी दी जा सके।

किसे चाहिए कितना कैल्शियम
रिकमेंडेड डायटरी इनटेक (आरडीआई) अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन द्वारा संचालित संस्थान है और इसके सुझावों पर दुनिया के ज्यादातर देश अमल करते हैं। आइए जानते हैं कि हमें किस उम्र में प्रतिदिन कितने कैल्शियम की जरूरत होती है और अगले पृष्ठ पर देखें कि किन चीजों में कितना कैल्शियम पाया जाता है :
उम्र- पुरुष- स्त्री
0-6 माह- 200 मिग्रा.-200 मिग्रा.
1-3 वर्ष- 260 मिग्रा.- 260 मिग्रा.
4-8 वर्ष- 700 मिग्रा.- 700 मिग्रा.
9-13 वर्ष- 1,300 मिग्रा.-1,300 मिग्रा.
14-18 वर्ष- 1,300 मिग्रा.-1,300 मिग्रा.
19-50 वर्ष- 1,000 मिग्रा.-1,000 मिग्रा.
51-70 वर्ष -1,000 मिग्रा.-1,200 मिग्रा.
71 + वर्ष- 1,200 मिग्रा.-1,200 मिग्रा.
(दिल्ली स्थित रॉकलैंड हॉस्पिटल की सीनियर डाइटीशियन डॉ. सुनीता रॉय चौधरी से बातचीत पर आधारित)
Source – Jagaran
   
Railway Employee (App) Rail News Center ( App) Railway Question Bank ( App) Cover art  

Railway Mutual Transfer (App)

Information Center  ( App)
 
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