ध्यान – अष्टांग योग का सातवां अंग हैं, शरीरस्थ मन को एक स्थान पर स्थिर कर ईश्वर के दर्शन हेतु निरंतर प्रयास करना, चिंतन करना तथा अन्य विषय विचारों से अलग रखना ध्यान कहलाता है। ध्यानावस्था में ज्ञान सूक्ष्म से सूक्ष्म रूप में प्राप्त हो जाता है।
ध्यान से मानस्रिक स्रुख व शांति का अनुभव प्राप्त होकर सत्य असत्य, विवेक, नम्रता आदि का भाव जाग्रत होने लगता हैं।
ध्यान केसे करें?
“बाह्य तैयारी”
ध्यान के अनुरूप शांत, एकांत, स्वच्छ स्थान का चुनाव सर्वाधिक उत्तम रहता हैं। समय की निश्चिता को बनाये रखे| वस्त्र सुविधानुसार आरामदेह शीतल हो। आस्रन शारीरिक ऊर्जा को भूमि से अवरोधित करने वाला हो। निद्रा, विश्राम, शौच, स्नान आदि से निवृति पश्चात ही ध्यान करना सर्वोत्तम होता है|
“आंतरिक तैयारी”
ध्यान करने हेतु योगाभ्यासी को निम्नलिखित ४ बिंदुओं पर का अनुशरण नितांत आवश्यक है|
१. प्रत्येक कार्य ईश्वर को साक्षी मानकर पुण्य प्राप्त करने हेतु करें
२. ध्यान का समय नजदीक आने से पूर्व अपने सभी कार्य पूर्ण कर लेवें जिससे कोई विचार बाधा न बनें।
३. स्राधक निम्न संकल्प लेवें-
- मैं शरीर नही आत्मा हूँ।
- मेरा कोई सगा संबंधी नही है।
- अपने को ‘मैं और मेरा’ का त्याग की भावना को दूर रखें।
- ईश्वर सर्वव्यापक है और आत्मा एकदेशीया
- ईश्वर-प्राणिधान करते हुए ध्यान करना।
” प्रक्रिया”
- आत्मोन्नति, आत्मोत्कर्ष, आत्मकल्याण, आत्मतृप्ति, आत्मसंतोष, आत्मनिर्भयता, आत्मस्वातंत्रय, आत्मानन्द, मोक्षानन्द, परमानन्द को प्राप्त करने का साधन ध्यान हैं।
- स्थिर होकर सिद्धासन, पद्मासन, स्वस्तिकासन अथवा सुखासन पर बैठें।
- मेरुदंड को सीधा रखें। संपूर्ण शरीर को ढीला छोड़ देवें। दोनों हाथ ज्ञानमुद्रा में करें। मन को विचार शून्य बना लेवें। अब धीरे धीरे आँखे बंद करें।
- अब शरीर के किसी एक प्रदेश में धारणा कर मन को स्थापित करें तथा संपूर्ण आत्मीक ऊर्जा को वहां स्थापित करें। विचक्र कीजिये मेर मन स्थिर है, मेरी आत्मा को अनुभव कर रहा है। संकल्प कीजिये की ईश्वर के अलावा मेरा कोई नही अब वही मेरा सब कुछ है।
- अब गायत्रीमंत्र अर्थ सहित हृदय में जप कीजिये। अंत में अपनी गलतियों का पश्चाताप करें पुनरापि दोहराने से अलग हो। तथा प्रार्थना कीजिये हे प्रभु आप ही मेरे सर्वाधार है, मेरे परमानन्द के आधार हैं। ये जगत आप से ही चलायमान हैं , मेरा कल्याण करें।
ऐसी प्रार्थना करते जाइये जब तक हो सके नित्य प्रतिदिन ऐसा ही करें। ईष्वर ने चाहा तो अवस्य आपको ध्यान का आनंद प्राप्त होग
“ध्यान के लाभ”
ध्यान के अनेक दैवीय लाभ हैं-
1 .ध्यान से उच्च एकाग्रता प्राप्त होती है।
2. जिकन व विवेक का वृद्धि होती है।
3. सत्य-असत्य का बोध होता है।
4. बोद्धिक मानस्रिक शक्ति का विकास होता है
5.प्रभु दर्शन का मार्ग प्राप्त होता है।
6. काम, क्रोध, मद, मोह, लोभ आदि से रहित होता है।
7. स्वस्थ शरीर की प्राप्ति होती है।
8. तनाव, अवसाद से मुक्ति प्राप्त होती है।
ध्यान मनुष्य का सर्वोत्कृष्ट कार्य है|
“ध्यान के अनुभव”
- ध्यान में साधक को आनंद की असीम अनुभुति के साथ साथ सत्यासत्य का अनुभव प्राप्त होता है। साथ ही शारीरिक मानसिक आत्मीक उन्नति होती है।
- निरंतर प्रयास से व्यक्ति समाधी के निकट पहुँच जाता है व स्वयं को हल्का , प्रसन्न, स्वस्थ, निरोगी अनुभव करता है।
- सिद्धियों को प्राप्त करने योग्य बनकर स्वयं में निरंतर परिवर्तन अनुभव करता है।
Source – ध्यानावस्था के अनुभव
लेखक: योगी सेवानगन्द स्रावनार्य
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